रचित के जीवन का निष्कर्ष
परिवार को पीछे छोड़कर, रचित को एक अजीब-सी शांति महसूस होती है—जैसे एक तूफान के बाद सब कुछ शांत हो गया हो। उसे इस बात का गहरा अफसोस है कि अपनी मानसिक शांति के लिए उसे इतना लंबा समय लगा। उसे लगता था कि अगर परिवार का साथ मिला होता, तो जीवन कितना बेहतर हो सकता था। लेकिन अब कोई और विकल्प नहीं है।
रचित जानता है कि उसके पिता के पास अपने व्यवहार को सुधारने के लिए पूरे 20 साल थे—एक लंबा समय, जिसमें वे अपनी गलतियाँ समझ सकते थे और रचित का जीवन बेहतर बना सकते थे—लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। हर बीतते दिन के साथ, उनका व्यवहार रचित के भीतर और गहरे घाव छोड़ता रहा।
अपने गुस्से, बातों और कार्यों से पिता ने कई बार यह साबित कर दिया था कि वे रचित को बर्बाद करना चाहते हैं। यह सिर्फ एक बार नहीं हुआ; उन्होंने ऐसा उसकी पढ़ाई, उसके करियर और उसके बचपन की खुशियों के साथ भी किया। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अपना काम संभालने के लिए और एक मशीन की तरह काम करने के लिए एक गुलाम चाहिए था। उन्हें कभी एक ऐसा बेटा नहीं चाहिए था जो आगे बढ़े और उनका नाम रोशन करे। वे अपने भोग-विलास में व्यस्त रहना चाहते थे और अपने बेटे रूपी गुलाम से ज़िंदगी भर काम करवाना चाहते थे, बस उतना ही कि वह कहा माने और करे, और अपनी सोच और बुद्धि से हमेशा गुलाम बना रहे।
रचित के पिता सिर्फ लापरवाह नहीं थे, बल्कि वे जानबूझकर उसकी खुशियों, पढ़ाई और करियर को खत्म करना चाहते थे ताकि उसे अंदर से पूरी तरह खोखला किया जा सके। उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि रचित किसी से भी न मिले—ना दोस्त, ना रिश्तेदार—जब तक उनके नियंत्रण में था। यह सामाजिक अलगाव भी इसी बात का संकेत था कि वे उसे एक गुलाम बनाना चाहते थे, जो उनकी विलासिता भरी जिंदगी के लिए काम करता रहे। यह एक ऐसा संघर्ष था जहाँ रचित को एक इंसान नहीं, बल्कि एक मशीन की तरह देखा और इस्तेमाल किया गया।
इसके बावजूद, रचित ने सब कुछ ठीक करने की उम्मीद नहीं छोड़ी। अपने जीवन के 10 सबसे महत्वपूर्ण साल उसने इसी कोशिश में बिता दिए। इन 10 सालों में से, शुरुआती समय उसने सहन करते हुए सिर्फ यह उम्मीद रखते हुए बिताया कि शायद एक दिन पिता समझें और यह सब परेशान करना बंद कर दें। वह इसी उम्मीद में जीता रहा कि शायद अब रुक जाएं और यह सब कुछ बदल जाए। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो उसने अपनी लड़ाई को और अधिक सक्रिय बना दिया। वह परिवार के हर सदस्य के पास गया, उन्हें अपने पिता के व्यवहार के बारे में समझाने की कोशिश की, और उनसे मदद माँगी। उसने हर संभव प्रयास किया ताकि परिवार एकजुट रहे, और उसे इस रास्ते पर अकेला न चलना पड़े।
रचित को अपने परिवार से सिर्फ एक ही शिकायत थी: उनमें से किसी को भी यह सब दिखाई नहीं देता था, या शायद वे इसे रचित के लिए "सामान्य" मान चुके थे। यह सब उनकी आँखों के सामने हो रहा था, फिर भी किसी ने पिता के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला, और न ही रचित का साथ दिया। परिवार में सभी उसे गलत मानने और गलत ठहराने में तो सक्रिय और मुखर थे, लेकिन जब बात रचित की तकलीफों को सुनने या दुखों को समझने की आती, तो वे पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाते थे। और कुछ-कुछ उनका अपना व्यवहार भी था जिसने रचित के लिए दूरिया बढ़ाई।
इसीलिए, रचित को परिवार से भी दूर जाना पड़ा। परिवार ने दुनिया के सामने रचित को गलत साबित करने के लिए पिता का पूरा साथ दिया, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए।
शायद यह सब इसलिए भी हुआ, क्योंकि रचित को बचपन से ही परिवार के साथ रहने का मौका ही नहीं मिला था। उसे हर दिन दुकान पर बैठाया जाता था, जहाँ वह सुबह से रात तक रहता। उसका पूरा जीवन ऐसे ही बीतता रहा—पूरे सप्ताह, पूरे महीने, और पूरे साल। वह कभी परिवार के साथ कहीं घूमने, शादियों में या ननिहाल नहीं गया। जब भी परिवार कहीं जाता, रचित हमेशा पीछे अकेला रह जाता था।
बचपन से शुरू के दस साल इसी कैद में बीते, फिर आगे के दस इन सबसे निकलने की कोशिशों में, सबको साथ लाने की, साथ रहने की कोशिशों में, और सबके सामने खुद को सही साबित करने की कोशिशों में, लेकिन सबको छोड़ना और सब कुछ पीछे छोड़ना ही आखिरी रास्ता बचा।
रचित के लिए निष्कर्ष
अब आगे क्या?
अब क्या, अब आएगी बाढ़ उन सभी बातों की जो जीवन में रह गईं। अब एहसास होगा कि यह क्या हो गया। इतना सारा समय चला गया, क्या से क्या कर सकते थे। अब मचेगी भागदौड़, एक साथ सारी बातें सामने आएंगी और कुछ समझ नहीं आएगा कि कहाँ से शुरू करें और करे तो क्या करें, क्योंकि हर जगह कमियाँ हैं। पिता जब खिलाफ हो और परिवार को भी कर दे, तो उसमें जो नहीं हो पाता है, वही सारी कमियाँ हैं।
लेकिन घबराना नहीं, एक खुशी है कुछ सही से शुरू करने की और बाकी सारे गम, जो सब चीजों के सामने आ जाने से हैं। समझ नहीं आएगा कि खुशी पर ध्यान देना है या बाकी कमियों पर । फिर भी घबराना इसलिए नहीं क्योंकि तुम्हारे अंदर समझ है जो पहले से बेहतर है। तुमने जितना वक्त कठिनाइयों में बिताया है, उतना ही खुद को संवारा भी है। तुम्हें खुद ही अपनी काबिलियत को ढूँढना है और उसी पर ध्यान केंद्रित करना है। कुछ नहीं गया है; गया वही है जो तुम्हारे लिए मददगार नहीं था, चाहे पूरा परिवार ही क्यों न हो। और इतना वक्त लगाने का यह फायदा है कि तुम्हें जिंदगी में कभी भी अपने परिवार को छोड़ने का गम नहीं होगा। तुम अपने फैसले पर दुबारा डगमगाओगे नहीं, क्योंकि तुमने दस वर्ष परिवार को और बीस वर्ष पिता को दिए हैं, जो बहुत बड़ी बात है, बहुत लम्बा समय है । और इसी तरह के फैसले जिंदगी में कुछ बड़ा करने की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं।