अब क्या, अब आएगी बाढ़ उन सभी बातों की जो पिछले दस साल में रह गईं।
अब खुलेंगी आँखें और एहसास होगा कि यह क्या हो गया। इतना सारा समय कहाँ गया? क्या से क्या कर लेते। अब मचेगी भागदौड़, एक साथ सारी बातें सामने आएंगी और कुछ समझ नहीं आएगा कि कहाँ से शुरू करें और करे तो क्या करें, क्योंकि हर जगह कमियाँ हैं। परिवार को जिंदगी से निकालकर देखो, तो उसमें जो नहीं होता है, वही सारी कमियाँ हैं।

लेकिन घबराना नहीं, एक खुशी कुछ सही से शुरू करने की और बाकी सारे गम सब चीजों के सामने आ जाने के, समझ ही नहीं आएगा कि खुशी पर ध्यान देना है या बाकी कमियों पर । फिर भी घबराना इसलिए नहीं क्योंकि तुम्हारे अंदर समझ है जो पहले से बेहतर है। तुमने जितना वक्त कठिनाइयों में बिताया है, उतना ही खुद को संवारा भी है। तुम्हें खुद ही अपनी काबिलियत को ढूँढना है और उसी पर ध्यान देना है। कुछ नहीं गया है, गया वही है जो तुम्हारे लिए मदद का नहीं था, चाहे पूरा परिवार ही क्यों न हो। और इतना वक्त लगाने का यह फायदा है कि तुम्हें जिंदगी में कभी भी अपने परिवार को छोड़ने का गम नहीं होगा। तुम अपने फैसले पर दुबारा डगमगाओगे नहीं, क्योंकि तुमने दस वर्ष परिवार को और बीस वर्ष पिता को दिए हैं, जो बहुत बड़ी बात है, बहुत लम्बा समय है । और इसी तरह के फैसले जिंदगी में कुछ बड़ा करने की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं।

रचित,
तुम उन सबकी बराबरी नहीं कर सकते, कुछ भी बेहतर नहीं कर सकते | तुम सिर्फ उनसे अलग हो सकते हो, तुम उनका हिस्सा हो ही नहीं, यही समझने में तुम्हे बहुत देर लगी और जो घाटा लगा वो कभी पूरा नहीं होगा, अब सिर्फ दूर रहने से कम हो सकता है और एक दिन बंद हो सकता है |