रचित की कविता खोलें

लेखक: गजेंद्र देवड़ा

कविता का शीर्षक: 'रचित की कविता'
लेखक: गजेंद्र देवड़ा
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मैं पर्वत चढ़ा तूने पर्वत मिटा दिया
मेरे भरोसे के बदले असमंजस में डाल दिया
ऐसा लगा जैसा कुछ हुआ नहीं मैंने कुछ किया ही नहीं
मेरी काबिलियत को ही दबा दिया
मेरे विश्वास को तोड़ने के लिए तूने सारे रिश्तों को ही खपा दिया
सारे ऐसे ही निकले सबने खुदको तुझमें बहा दिया
फिर आई जिंदगी में दो परिया या कहूं तो तीन क्योंकि समाज को हजम नहीं
जिनने मुझे सही गलत समझा दिया
मुझे थोड़ा सा बहा के तूने खुदको भगवान बना दिया
हरकत से खुदको इतना गिरा दिया

जिन परवतो को मिटाया उनको याद करता हूँ
सारे समाज दुनिया को बदलने की ताकत रखता हूँ |

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