सन 1999 - उम्र 10 साल
[स्कूल]
खोलें

कक्षा 4 के एक विद्यार्थी को गुरुजन, "विद्या का बस्ता" बुलाते थे
मिलता है उसको कंप्यूटर उस जमाने में, जब मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे

सिखाके कंप्यूटर उसका पिता, काम उससे करवाता है
आगे बढ़ते देख कामकाज में, स्कूल उसकी बदलवाता है

डाल के सरकारी स्कूल में, गृहकार्य कम करवाता है
छुटियो की शिकायत मिटाता है, काम करने का वक्त बढ़ाता है
आगे बढ़ते देख कामकाज में, घर पर खेलना भी बंद हो जाता है

दिनचर्या में उसकी बस स्कूल व दुकान, खेल की कोई जगह नहीं
साल एक ही हुआ अभी तो, बचपन वाली बात कोई रही नहीं

11 साल का ही तो था अभी, काम करने की जरूरत क्या पड़ गई
ऐसा नहीं कि पिता को पढाई की समझ नहीं, ना ही पैसों की कोई कमी
होती है कार बड़ा सा घर, और टेलीफोन उस जमाने में भी

सन 2001 - उम्र 12 साल
[बचपन]
खोलें

खेलना तो बंद हुआ ही था, ननिहाल कभी जाने दिया नहीं
खुश होते बच्चे हर रविवर या हो त्योहार, इस बच्चे का तो वो सुख भी बचा नहीं

आगे बढ़ा फिर भी वो, डांट के आगे कुछ चला नही
थप्पड़ भी पड़ी थी एक बार, क्योंकि हिसाब ठीक से करा नहीं

सन 2003 - उम्र 14 साल
[खेल व दोस्त]
खोलें

आंठवी पार होते हि, स्कूल हमेशा के लिए छुड़वा दी
आगे बढ़ते देख कामकाज में, दुकाने दो बनवा दी

बुलाए नए शिक्षक कंप्यूटर के, बच्चे को और सीखाना था
जितनी जरूरत हे पिता के काम में, उतना ही विशेषज्ञ बनाना था
देख के बच्चे का उत्साह, कोशिश करी बेहतर सिखाने की
थोड़ा ज्यादा सिखा दिया, इसीलिये दोनो को वहा से निकल जाना था

तारीफें थी हर जगह, उमर से ज्यादा मिलती थी इज्जत
चाहे आस पड़ोस और परिवार रिश्तेदार, सब जानते और मानते थे

लागत बस इतनी सी थी, नहीं बचपन वो जी पाया
नहीं उसके दोस्त बने, नहीं ननिहाल जा पाया
नहीं वो कभी खेल पाया, नहीं रविवार त्योहार मना पाया

जिंदगी में उसके सिर्फ, दुकान और डांट बची थी
बस कुछ घंटे थे स्कूल के, वो जन्नत भी अब छूट गयी थी

दुकाने अब हो गयी बड़ी, बिज़नेस बढ़ गया था
सुबह से शाम दुकान, खाना भी टिफिन में होने लग गया था
अब आंठवी का बच्चा, दुकान सँभालने लग गया था

सन 2004 - उम्र 15 साल
[अपनापन]
खोलें

महानता की मूर्ति (क्र.स.1)

बचपन ही नहीं खोया था उसने, खोया कुछ और भी था
अपनापन भी शायद, जानबूझकर मिटाया गया था

अपनापन अपनत्व लगाव Connection Feelings Attachment

नाना ने किया हे धोखा पैसों में, दादा ने बचपन में तड़पाया था
मामा चाचा और ताऊ सबने भी, दिल पिता का दुखाया था
क्या जरूरत थी बच्चे को बताने की, फिर भी पिता ने बतलाया था

पड़ोसी हो या दामाद घर के, या हो तुम्हारे भाई सारे
सबसे खतरा है तुमको, बचाके रखना हे जरुरी
यही पिता ने समझाया था

सबसे मिलने दिया नहीं, दूर रखा बचपन से ही
करी सबकी बुराइया, लिहाज नहीं रखा किसी का भी

हो सकते हे कोई ग़लत एक या दो या थोड़े उससे ज्यादा,
लेकिन सबको कैसे गलत कर दिया
विश्‍वास जो जताया बच्चे ने अपने स्कूल के शिक्षको पे,
उसको भी मसल के रख दिया
दोस्त आए कभी दुकान तो उनको भी भगा दिया

भरोसा-अपनत्व-दोस्ती-लगाव, महसूस करने दिया ही नहीं कभी कुछ
सब बिना भावनाओं के, शब्दों में बदल के रख दिया

कहा मीठा बोलता था हँस के वो बच्चा, अब वो करकश होने लग गया
घर में भी वो अब रात में, खुदको बंद करके रहने लग गया
कंप्यूटर से शुरू हुआ, 6 वर्षों में कंप्यूटर बनके रह गया


यह कैसी नीव रखी पिता ने, क्या सोचा होगा क्या विचार रहे होंगे?

बातें हैं सब अचरज की ये,
विश्वास आता नहीं
सवाल होते हे खड़े बहुत|

कहा गए नाना नानी दादा दादी मामा मामी,
और चाचा चाची, या बुआ या मासी या ताई
क्या किसी ने बच्चे को संभाला नहीं?
क्या किसी ने बात की नहीं?
क्या किसी ने अपने घर बुलाया नहीं?
क्या किसी ने उसके लिए कुछ कहा नहीं?

पिता रहता था 10 गांव दूर अपनो से, लडता था सब से ही
सब गलत थे वो सही था, यही उसने बतलाया था
अपने जो रिश्ते में लगते हैं, वो क्यु 10 गाव दूर रहते है
क्या सबसे खफा होके आया था, या सबने इसे भगाया था

कोई है ही नहीं इस दुनिया में, जो पिता को समझा सके
कोई है ही नहीं इस दुनिया में, जिसको पिता दोस्त कह सके

बातों मैं सबको ले लेता था, किसी को भी अपना बना लेता था
फिर चाहता था उसे नचाना इसारो पे, नहीं नाचे तो नीचा दिखा देता था
भुलता नहीं था बातें वर्षों तक, झठ से किसी को भी झुका देता था

बच्चा इन सबसे अंजान था, उसका पिता सबसे महान था
महानता की मूर्ति (क्र.स.1) था, यही पिता ने समझाया था

सब लोग तो बाद में आते हैे, मां भी कहा कुछ बोल पाती थी
मां भी सुनती थी भला बुरा, अपने पीहर का और मां बाप का
मां भी करती थी कितने ही वर्षों से, कामकाज दुकान का
डांट खाती थी बहने भी बहुत, बहनों को भी पिता ने कहा बक्शा था
हर दो दिन में एक घंटे का सत्र, लोगो की बुराइयों का भी चला करता था

सब जीते डांट से बचने को, जो काम दिया वो करते थे
खाना मिलता था बढ़िया हमेशा, है और भी जरूरते कहा समझा करते थे

अचरज अभी भी होगा की, इतना सब कैसे हो सकता है
शादी ब्याह त्योहार भी तो होते हे, मिलने जुलने और खेलने को
होली दीवाली निकलती दुकान पे, शादी ब्याह में ले जाते नहीं
वो रहता था दुकान पे अकेले, जब सब मिल के जाते कहीं

पिता कहता था, तुम सब उनसे बेहतर हो
जिनको खाना मिलता नहीं, और मां बाप नहीं
लगता था बुरा तब, अब लगता है सही
कि बेहतर थे सिर्फ उनसे ही
जिनको खाना मिलता नहीं ,और मां बाप नहीं

थे सब बाहर बहुत ही अच्छे, दुनिया होशियार समझती थी
घर पर पड़ती थी डांट एक दिन भी, कहा उसमे छुट्टी मिलती थी

उमर है 16 साल बच्चे की, 16 वर्षों की कहानी बाकी है
जिस विचारधारा से चल रही जिंदगी, 16 और साल निकालने बाकी है

यहां पे विराम लेना चाहिए कम से कम एक दिन | Consider taking a day break

सन 2004-2005
उम्र 15-16 साल [पढ़ाई]
खोलें

महानता की मूर्ति (क्र.स.2 व 3)

जैसा चल रहा था उसमें, बच्चे ने खुद को ढाल लिया
आदी हो गया इतना वो, डांट को ही आधार जिंदगी का मान लिया

गुस्सा करते है डांटते है तभी तो, मैं कोई गलत काम करता नहीं
आगे बढ़ा हूं समाज में तभी तो, वरना कोई और ऐसा कहीं दिखता नहीं

असर हो गया है हर बात का, जो पिता ने बतलाई है
उस महानता की मूर्ति (क्र.स.2) में, अच्छे से मजबूती आई है

हर कक्षा में प्रथम वो आता था, बातें उसके दिमाग की निराली थी
बैठ के दुकान सुन के डांट हमेशा, आठवीं में जिले में रैंक निकाली थी (2003)

गए बिना स्कूल कहीं, लिए बिना कोई ट्यूशन
अगले ही साल ओपन स्कूल से, दसवीं भी पार कर डाली थी (2004)

बात तो बहुत खुशी की है लेकिन, द्वंद्व यही से शुरू होता है
पिता चाहता था दायरा सिमित लेकिन, दौड़ने वाला दिमाग कहा रुकता है

दसवीं प्राइवेट भी होती लेकिन, बच्चे की पढ़ाई छुड़वानी थी
कोशिश थी ओपन स्कूल से दसवीं, छह वर्षों में करवाने की

पढ़ने का वक़्त वो देता नहीं था, पढाई की बात से चिढ़ता था
काम करके दिनभर बच्चा रात में, कमरे में बंद होके पढता था

पढ़के कुछ न पाया ऐसे उदाहरण, हर समय वो प्रस्तुत करता था
वहीँ दूसरी और समाज में, बच्चों को पढ़ाने के भाषण देता था

डांट अब उसकी तीव्र होने लगी, बिना बात के गुस्सा फूटने लगा
बिना मतलब के इस गुस्से का, वो बच्चा मतलब ढूंढ़ने लगा

डांट और गुस्से को बच्चे ने, हमेशा मतलब जरुरत का समझा था
डांट का मतलब गलती हुई, गलती का मतलब सुधार होना था
इज्जत करता था अभी तक भी, उसने पिता को महान समझा था
नहीं मिली गलती किया अनदेखा भी, लेकिन हमेशा ऐसा होता रहा
उस महानता की मूर्ति (क्र.स.3) पे, पहला सवाल खड़ा हो गया था

सन 2004-2006
उम्र 15-17 साल [घर]
खोलें

महानता की मूर्ति (क्र.स.4)

किस्ते रहती थी सर पे, मोटी रकम ब्याज की पिता देता था
करता हूं सब तुम्हारे लिए, रात में सो नहीं पाता कहता था
मांगे जब भी खिलौने घर का सामान, ऐसी बातें करता था
जब भी लाता फल फ्रूट, किस्से ब्याज के सुनाता था
उनको खाते खाते हमेशा, सारी महंगाई समझाता था

बातें सारी सुनके सब, मदद करना चाहते थे
कर देते खिलोनो का मना, सामान भी कम ही मंगवाते थे
ऐसा नहीं है कि मांगे बड़ी थी,
जरूरत की चीजों की भी कमी पड़ी थी,
चला लेते सब उसमें भी लेकिन,
पिता के दावे थे बड़े दुनिया में,
सब कुछ सारी सुविधा घर में होने के,
उनको निभाने की मुश्किल खड़ी थी|

एक मिनट मांगो पहाड़ टुट जाए
एक मिनट लेट हो जाए, तो आधा घंटा सुनाए
हर छोटी मोती बात पर, जीवन के सारे दुख गिनाए

इतना व्यस्त इतना परेशान, इतना सब कुछ करने वाला
5 मिनट लेट हुए तो, आधा घंटा सुनाने वाला
दो घंटे बाद कही जाके, बतियाने बेठ जाए

ऑफिस देर हो रही जिसको, जिसके लिए डांटा हर एक को
ऑफिस पहुचने से पहले ही, कहीं भी बतियाने रुक जाए

मिल जाए अगर विषय लड़ाई का, घर की या समाज की
सारी थकान-ब्याज-काम भूल के, दो दो दिन बिता आए

समय नहीं परिवार रिश्तेदार के लिए
समय नहीं बहनो के ससुराल के लिए
समय नहीं कही हॉस्पिटल जाने को
लेकिन समय की कोई कमी नहीं
बुलाओ तुम बाते बड़ी बड़ी करने को

सबको वंचित रखके सबसे, जो बातें पिता बनाता था
समय की अहमियत समझाता, पेट्रोल की कीमत बताता था
कहाँ जाता वो समय जब, दो दिन लड़ाई में उलझा रहता
ना परिवार ना रिश्तेदार, फिर किसका भला करने को
पिता 100-100 किमी पेट्रोल जलाता था

--

चेहरा देखा बच्चे ने जो हमेशा,
वही चेहरा वही भाव घर में रिश्तेदारो में,
माथे पे चिंता की लकीर, आंखों में नींद
की कमी या बातो में तनाव इतना
जो हमने देखा व्यवहार या चेहरा,
उसकी दुनिया कोई माने भी ना,
वो चेहरा वही हाव भाव इतना बदल जाते,
जब या किसी ओर से बतियाता था|

5 किमी चलने का समय नहीं, पेट्रोल भी पिता गिनाता था
वही बिना मतलब के कामो में, समय पेट्रोल हमेशा गँवाता था।
बिना मतलब के कैसे हुए?
न उन कामो का घर से मतलब,
न दुकान या ग्राहक से,
न परिवार या बहन के घर से,
जब यहां कहीं समय नहीं
तो बाकी के काम बिना मतलब के हुए|

बहने बेटियों के ससुराल जाने का समय नहीं,
नहीं कभी ले गया फल फ्रूट
वही इंसान अपने मन से बे-मतलब में
गाड़ी चलाता समय भी दे देता था
माँ को 5 मिनट देर के लिए डांट के,
बातें नाना नानी तक सुनाता था,
5 मिनट बाद ही आधे घंटे कहीं भी रुक जाता था

क्या तब पिता के सारे काम पुरे हो जाते
क्या तब सारा समय रुक जाता था
क्या तब सारा खर्चा और उस समय का
क्या ब्याज भी माफ हो जाता था?

मां बच्चो को एक दिन भी, घुमाने नानाने नहीं ले जाता था,
टाइम नहीं होता था एक दिन भी एक साल में,
वही हर साल खुद 10-10 दिन घूम के आता था।

शादी फंक्शन में जाने से पहले,
समय और पेसों को समझाता था।
एक घंटा भी रुकता नहीं वहा लेकिन,
रास्ते में दो घंटे बैठ जाता था

गाड़ी में कहीं जाते वक्त, डांट पड़ती मिजाज गरम रहता था
वही कुछ के बैठने से, मिजाज बदल के रंगीन हो जाता था
बातें करता था उनसे जिस तरह, क्या हमको नहीं दिखता था?
पता नहीं मां ने कुछ कहा क्यों नहीं कभी?
क्या पिता ने इतना चुप कर रखा था?

अपनो से अलग व्यवहार के कारण
उस महानता की मूर्ति (क्र.स.4) पे, दुसरा सवाल खड़ा हो गया था

सन 2004-2006
उम्र 15-17 साल [दुकान]
खोलें

महानता की मूर्ति (क्र.स.5 व 6)

छह: साल हो गए दुकान पे, बच्चा कुछ समझने लगा था
काम को बेहतर ढंग से, बिना समझाए भी करने लगा था
कुछ बातें अपनी तरफ से, कुछ तरिके अपने बताने लगा था
कुछ विचार हमेशा के कामो में, दिमाग उसका चलने लगा था

दुकान बच्चे को संभला के, पिता नए काम करता था
कहीं पैसा लगाता, कहीं कुछ जॉइन करता था,
कभी पंचायत समाज के, नाम से जाता रहता था
राय पूछता बच्चे से, अलग बताने पर चिढ़ता था
बात बने तो उसकी, नहीं बने तो बच्चे के सर पे मढता था
बच्चा बोले तो समझा के चिल्ला के, या फिर टाल के
बात को आगे नहीं बढ़ने दिया करता था

अच्छे और समझदार बड़े लोगो का, आना जाना रहता था
कोई करता काम की तारीफ, पढ़ाने की सलाह दिया करता था
जिसको भी देखा पिता ने बच्चे से बात करते
या दी सलाह पढाने की, सबकी बुराइयां चालू
और उनका आना जाना बंद हुआ करता था

अपने काम के क्षेत्र में भी पिता, हर आगे बढ़ने वाले से
चिढ़ता था और गलत उसे, साबित कर दिया करता था

चाहे स्टाफ से शिकायत हो, या ग्राहक से झगड़ा
चाहे बैंक या ऑफिस की उल्झन, बच्चे को सुनना पड़ता
सबसे काम करवाके भी, काम कभी नहीं पूरा होता

ग्राहको की बात करे, उसमे भी दिक्कते थी समझने को
ग्राहक पेसे देने वाले होते हे, उसमें क्यों अलग व्यवहार होता था
बराबर पैसे देने वाले आदमी या महिला में क्यों फर्क होता था

गिनाता कमिया आदमी ग्राहको की, उठाता सवाल हर चिज़ का
विपरीत इसके बच्चा पैसे अच्छे लेता, समय भी कम लगता था
पिता ने नहीं संभाले कभी, बच्चा अच्छे से संभालने लगा था

पैसे देते अच्छे आदमी ग्राहक, फिर भी लड़ लेता था
बढ़ रहा था काम, फिर क्यों उनको भगा देता था

मतलब कुछ बनने लगा था, न पढ़ने देता न कुछ करने देता
अपनी बनाई दुनिया से, एक कदम भी बाहर नहीं रखने देता


उस महानता की मूर्ति (क्र.स.5) पे, तीसरा सवाल खड़ा हो गया था

दिक्कत शायद नहीं होती अब भी, अगर हरकत सही लगती,
कुछ महिला ग्राहको को पिता घंटो देता, पैसे लेने का नियम भुला देता
चाहे कितना भी हो जरूरी काम, सब कुछ हटा देता
बातें करता रहता, पहुंच जाता उनके घर परिवार तक
समझ नहीं आता इतनी बातें, कैसे सही थी काम के वक्त

बदल जाता व्यवहार, हरकत भी कुछ समझ नहीं आती थी
कुछ महिला ग्राहको के लिए पिता, समय काम सब छोड़ देता था
जाना होता था कहीं, और प्लान बदल जाता था
कुछ महिला ग्राहको के लिए पिता, सारे काम भुला देता था

सबके घर की पंचायत में, पिता को बड़ा आनंद आता था
जो बैठ जाए एक बार करने, फिर महिनो उसमें बिताता था
वही पे बात करे घर में कोई, दो मिनट रोकना चाहे तो
इतना झल्लाता था

हो गए थे छह: साल बच्चे को, दुकान पे बैठने जब से लगा था
समझ भी थोड़ी बढ़ी थी, बातें वो कुछ देखने समझने लगा था

महिला ग्राहको के प्रति, व्‍यवहार जो पिता का होता था
उसे दिखने लगा था, बच्चा असहज महसूस करता था
जिस तरह से पिता संभालता महिला ग्राहक,
बच्चे को वैसा नहीं बनाना था

पिता की किसी आदत का, बच्चे को कोई लेना देना नहीं
लेकिन कोशिशे पिता बच्चे को, शामिल करने की करता था

बेटा या बेटी के लिए, एक व्यवहार होता है
हर चिज़ की एक जगह, एक माहौल होता है
आप कहा हो खड़े, माहौल क्या है
कहा क्या बोलना, हावभाव क्या है
इन सब का ज्ञान शायद पिता को,
नजदिक नजदिक भी नहीं था

--

एक बार बुलाता है बच्चे को, कहीं ऑफिस में
मिलता है पिता टेबल पर बैठे, कुर्सी पे बैठी महिला के सामने

क्या व्यवहार था ये, बहुत सवाल है
करनी थी जो भी हरकत पिता को, तो बच्चे को बुलाया क्यों
अगर बुलाया था काम से, फिर खुद को उस स्थिति में रखा क्यों

क्या समझे इस हरकत को, और सारी बातें जो हो रही थी
सबको मिलाके अगर बच्चा देखे तो, समझ एक साफ हो रही थी

पिता का व्यवहार तो सही नहीं लगता, बच्चे के सामने तो अलग रहता
सारी बातें मिलाके है लगता, वो बच्चे को भी शामिल करना था चाहता

नहीं लगा सही बच्चे को, समझ आ गया काम अब नहीं साथ करना


उस महानता की मूर्ति (क्र.स.6) पे, चौथा सवाल खड़ा हो गया था


दबाव बन गया था अब बच्चे पे, स्कूल भी छुड़वा दी थी
सबसे रखा दूर कोई है नहीं, जिसको तकलीफ बतायें
और घर में तो मां खुद भी, कहा कुछ बोलती थी

तनाव का दखिला हो गया जिंदगी में,
सवालो में बच्चा घिर गया,
डिप्रेशन कहते है जिसको,
उसका काम शुरू हो गया

पढ़ने के रास्ते बंद थे शूरू से,
काम और कोई आता नहीं,
दुकान का काम अब कर सकता नहीं,
मदद किसी को ले सकता नहीं,
अपनो से कभी बातचीत हुई ही नहीं,
बात करके भी बच्चा क्या कर पाता,
जहां दामाद-भाई को चोर समझा जाता

अब रास्ता बचा एक मरने का,
कोशिशें भी की, तरीके भी ढूंढें

पता नहीं कैसे कहाँ से,
संघर्ष उसमें भरा था
ऐसी हालत में भी,
दिमाग उसका चला करता था

खुद अकेला ही खुदको संभालता
सारी समस्याओं के हल निकालता

खुद पे था विश्वास बहुत
पढ़ के कुछ कर जाने का सोचा
मरना तो हे अब, खुदखुशी से पहले
एक कोशिश करने का सोचा

पहला पड़ाव समाप्त

1999-2006 | ऊपर प्रत्येक शीर्षक के कोष्ठक में वह है, जो उसे कभी नहीं मिला|

सन 2006-2007
उम्र 17-18 साल
[आत्मविश्वास व साहस]
खोलें


-- पूर्व में --
"...खुद अकेला ही खुदको संभालता
सारी समस्याओं के हल निकालता

खुद पे था विश्वास बहुत
पढ़ के कुछ कर जाने का सोचा
मरना तो हे अब, खुदखुशी से पहले
एक कोशिश करने का सोचा..."

पढ़के क्या बन सकते हैं, इसकी तलाश होती है
जिंदगी में अब खुशी, एक उम्मीद और आस होती है

अखबार में वो नियुक्ति की, एक खबर से प्रेरित होता है
"एक करोड़ का प्रौद्योगिकी के छात्र को प्रस्ताव मिलता है"

जो दुनिया में होता है, कर सकता हू मैं भी वो
इस तरह का उसका, साहस और आत्मविश्वास होता है
अंजान पुरी तरह से होके भी, हर संभव कोशिश करता है
आत्मविश्वास और संघर्ष को नए स्तर पर रखता है
अगर पढके है कुछ करना, तो है बड़ा इंजीनियर बनना
कभी वैज्ञानिक बनने का सोचता, यंत्रों में मन लगता है

कोशिश शहर जाने की करता, पिता नहीं भेजता है
अच्छी शिक्षा लेना चाहता, शहर नहीं जा पाता है
लेकिन पढ़ने के अलावा तो, विकल्प मरना ही होता है।


किसी तरह दाखिला शहर में लेने को,
बात अब वो अपने भाई से करता है,
भाई के शिक्षक से भी सलाह लेता है,
दिमाग पे अपने बहुत यकीन होता है,
वो इंजीनियर की पढ़ाई भी दुकान से,
करने की कोशिश करता है

प्रैक्टिकल में दे दूंगा साप्ताहिक जब,
आऊंगा दुकान के काम से शहर
खुद पढ़ सकता हू, साबित करने को वो
दाखिले से पहले परीक्षा देने को तेयार होता है
बिना स्कूल गए लेकिन, इंजीनियरिंग नहीं होती है
शिक्षक-भाई की सलाह, कॉमर्स ही विकल्प होती है

पिता भेजता नहीं समय पे फॉर्म भरने को
आखिरी दिन को जल्दीबाजी में फॉर्म भरता है

विषयो का कुछ पता नहीं, फॉर्म गलत भरता है
बिना क्लास या ट्यूशन के, वो स्वयं से पढ़ता है
एक विषय से अंजान, वो किताब भी कहा लाता है
एक विषय के कारण, वो पीछे रह जाता है
कहा रुकता है एक बार फेल होने से,
दूसरी बार में बारहवी पार करता है (2007)

बैठा तो वो है दुकान पर, दिमाग कहीं और होता है
रहते हुए ख्यालों में भी वो, दुकान अच्छे से संभालता है

सन 2008 - उम्र 19 साल
[संघर्ष]
खोलें

महानता की मूर्ति (क्र.स.7 आखिरी) | इंसानियत (क्र.स.1)

दुकान पे अभी भी बैठता है, काम करके रात में पढ़ता है
अकेला ही खुद से पढ़ के, वाणिज्य विषय को समझता है
स्वयं से ही कॉलेज (B.com) का, पहला वर्ष पार करता है (2008)

पढ़ता देख के पिता अब, खेलने की सलाह देता
बचपन में एक दिन भी, खेलने नहीं देने वाला
खेलना होता है जरूरी, इस तरह की बातें करता
नया नहीं था ये तरीका, हमेशा से है होता आया
तुम्हारा ध्यान हटाने को, लालच पिता देता आया

खुश करने को तुमको वो, बड़ी बड़ी बातें करता
वक्त लगे चाहे तुम रुको कितना भी,
आखिर सपने दिखा देता,
जैसे ही तुम सपने देखो,
अपने काम से हट जाओ,
मन से खुश हो जाओ,
सब कुछ फिर मना कर देता,
निराश और हताश कर देता,
तुम्हारे मन के भावो को, बनाता और बिगाड़ देता
उभर जाओ जैसे ही, फिर से वही तरीके अपनाता
ऐसा हमेशा होता रहता, रचित अब लालच में नहीं आता


साबित कर दिया पढके, काम करके भी दिखा दिया
दुकान पे नहीं बैठना ये भी, बहुत बार ही बता दिया
सबको कहता पिता पढने को, अच्छे उदाहरण देता है
दिमाग है कुछ कर जाने का, मुझको क्यों नहीं पढ़ाता है

काश कोई पिता को, मना सकता बात कर सकता
जवाब रचित को नहीं मिलता, मन का बोझ नहीं मिटता
कभी अकेले में रोता है, तोड़ फोड़ भी करता है
निराशा हताशा का असर आ जाता है

काम-पढाई से नहीं थकता, मन का बोझ बढ़ जाता है
आत्मविश्वास वही साहस वही, संघर्ष भी शुरू हो जाता है


पिता के इस व्यवहार के कारण
महानता की मूर्ति (क्र.स.7 आखिरी) का अब खंडन हो गया था

पिता नहीं महानता की मूर्ति , पिता ने गलत समझाया था
पिता नहीं महान है आम इंसान, अब समझ आया था
इंसानियत (क्र.स.1)


संघर्ष चाहे कितना भी बढ़े, आत्मविश्वास थोड़ा आगे रहता
इतना सब कुछ कैसे सहता, खुद को बच्चा बनाएं रखता
चला जाता कभी बहन के घर पे, उसको वहा अच्छा लगता
उम्र कुछ भी हो वो, भांजे भांजियो के साथ खेलता रहता

भांजो के साथ अच्छा बितता, थोड़ा सा जो समय मिलता
कंप्यूटर तकनीक या कार, बातों का विषय दिलचस्प रहता
हम उमर नहीं फिर भी, व्यवहार दोस्तो सा रहता

साल में एक दो बार वो, कुछ घंटे ननिहाल बिता आता
शाम 5 बजे जाना सुबह आना, सिर्फ एक रात रुक पाता
रात सामने और उसमें भी, 6 घंटे बस का सफर करता
दिन में रहना दुकान पर हमेशा, बाकी बचा समय मिलता
पढ़ना हो खेलना या फिर ननिहाल, सिर्फ रात में होता

आठ साल हो गए दुकान पे, शादी का भी रिश्ता आता
पढ़ नहीं पाया तो मरना है, मन में सोचके
"पढना है अभी" कहके, वो मना कर देता

विपरीत इस परिस्थति में भी, गतिशील वो हरदम रहता
नहीं बनना था पिता जैसा, समस्या बस इतनी सी देखता
काम अलग फिर सब सही होगा, इस उम्मीद से था वो जीता


संघर्ष तो वो भी था जब, बच्चा घर से दुकान जाता
दुसरो को खेलते देखता, खुद नहीं खेल पाता था
मन के भाव जैसे होंगे तब,
पिता अब भी नहीं भुलाने देता,
तन मन दिमाग हर तरफ,
संघर्ष गहराई से व्याप्त रहता

सन 2009-2010
उम्र 20-21 साल
[शहर-स्पोर्ट्स बाइक]
खोलें

इंसानियत (क्र.स.2 व 3 व 4) | रिश्ते पे चोट (क्र.स.1 व 2)

पढ़ने का समय मांगता है, शहर जाना चाहता है
पढ़ने की काबिलियत बताता है, याद दिलाता है

कक्षा एक से ही प्रथम आता हूं
कक्षा पांच से नियमित दुकान बैठा हूं
कक्षा आठवीं में तो पांच विषयो में
विशेष योगता (D) के साथ साथ
जिले में रैंक भी लाता हूँ
वाणिज्य जैसा विषय भी
खुद से पढ़ के समझता हूं

अब हो गए आठ साल दुकान पर
पांच साल हुए स्कूल छोड़े
फिर भी पढ़ने की इच्छा रखता हूं


पढ़ने के लिए तो रचित को पिता नहीं भेजता लेकिन,
दुकान के काम से शहर तो, वैसे भी जाना पड़ता है
"शहर आने जाने की बजाय,
काम भेज देना बस से, शहर का मैं वही कर लूँगा,
कंप्यूटर ले जाता हूं, दुकान का काम भी करता रहूँगा"

इस तरह रचित, काम साथ लेके शहर आता है
कुछ महीने शहर कुछ दुकान, दो साल निकालता है

-- शहर की दिनचर्या --

सुबह उठके चार पांच बजे
होके तैयार सिटीबस से ट्यूशन पहुँचता
सुबह की क्लास फिर दुकान के काम
फिर खाना और दोपहर की क्लास पढ़ता

काम जगह-जगह जाने से होता
फॉर्म भरता जमा करवाता
सिटीबस बदलते बदलते शाम को घर आता
पार्सल बनाता बस पे देता और नया लेता

फिर रात होते होते कंप्यूटर पे काम
और पढाई करके 2-4 घंटे सोता
फिर से सुबह जल्दी उठना होता

हर एक मिनट की खबर फोन पे देता
यकिन नहीं होगा लेकिन दिन के
दो तीन घंटे पिता का फोन चलता

नए लोगो के बीच आया था लेकिन
मिलने बात करने का समय कहा बचता

थोड़ा सा ही शहर में पढ़ पाता है
कॉलेज के पहले वर्ष में,
स्वयं से पढ़ के 48.66% लाया था
कॉलेज के दूसरे व तीसरे वर्ष में,
कुछ महिनो के ट्यूशन से ही,
68.5% और 72.5% प्रतिशत बनाता है

गोल्ड मेडलिस्ट के जैसे नंबर लाता है
70% पे उस साल गोल्ड मेडल मिलता है
पहले वर्ष में भी कुछ महीने शहर आता
तो शायद कॉलेज में गोल्ड मेडल लाता

पढ़ने शहर आया और, काम भी तो साथ में करता है
पढ़ने वाले बच्चो को, कोई कहा परेशान करता है
फिर भी पिता का योगदान, पढाई रोकने में बहुत होता है
कभी तो परीक्षा के दिन भी, डाँट के ऑफिस भेजता है

कॉलेज के बाद भी रचित, आगे की तैयारी करता है
उसको भी पिता निराधार, बातें बनाके रोकता है

"जून में तो गर्मी की छुट्टिया है कोई क्लास नहीं"
इस स्तर पर पढाई में, गर्मी की छुट्टिया कहा होती है
बे मतलब की बातें करके पिता, अपनी मन:स्थिति बताता है
क्लास बंद करवाता है, फिर से दुकान बुलाता है
कभी शहर कभी दुकान, अनिश्चित माहौल बना रहता है

मना करे नहीं सुने, तो डांटता है
"मैं अपने दुख किसको सुनाऊ",
ऐसी बातो में एक घंटा और बीत जाता है
मानसिक संघर्ष अभी भी, हर दिन चालु रहता है

"पैसे बर्बाद कर दिये ट्यूशन के", ऐसी बातें करता है
बोलने देता नहीं तुमको, जो मन में आये कहता है

ये पहला इंसान देखा जो, अपने ही बच्चो के साथ
ऐसा व्यवहार करता है, और इसी कारण
इंसानियत (क्र.स.2) पे, पहला सवाल खड़ा हो जाता है

जब पिता स्वयं से ऐसी हरकत होती है,
तब, रिश्ते पे चोट (क्र.स.1) लगती है

--

सिटीबस बदलते बदलते, समय ज्यादा जाता है
समय बचाने के लिए, पिता नयी बाइक दिलाता है
वो भी एक महँगी स्पोर्ट्स बाइक होती है,
पिता के निर्णय से खुश हुआ, यह पहला मौका होता है

--

जॉब दिलाने किसी लड़की को, पिता मदद करता है
उसको ऑफिस और, शहर का काम सिखाता है
कार से, स्पोर्ट्स बाइक पे भी उसको ले जाता है
जो भी हो रचित को किसी से मतलब नहीं
लड़की के पिता, परिवार को सही लगता है
जिसको जैसा करना है वो करता है

समय के साथ रचित को, उस लड़की और उसके
घरवालों का व्यवहार, थोड़ा अजीब लगता है
रचित को दूर ही रहना होता है लेकिन
सबका व्यवहार रचित को,
खुद पे थोड़ा हावी लगता है,
मन में सवाल खड़े करता है,
- अचानक से हर कोई क्यों, इतनी दिलचस्पी दिखा रहा है?
- क्यों पिता रचित का स्वभाव और, उसके बारे में इन सबको बता रहा है?
- लड़की की मदद तो पिता कर रहा है, तो इन सब में रचित को क्यों बीच में लाया जा रहा है?
- हर कोई एकदम से इतना नहीं बदलता, सबको किस बात से प्रेरित किया जा रहा है?
- जैसा व्यवहार हो रहा है, हर कोई नहीं कर सकता, सबके अंदर इतनी हिम्मत कौन और क्यों ला रहा है?

रचित को यह सब, निजी जिंदगी में दखल लगता है
स्पस्ट शब्दों में अपने घर पे, सबको दूर रखने का कहता है
लेकिन उसका भी असर कम होता है

रचित को मतलब को नहीं लेकिन मन में आता है
कैसे एक पिता अपनी बेटी को
किसी और के साथ स्पोर्ट्स बाइक पे भेज देता है
कोई आपत्ति नहीं करता उल्टा खुश रहता है?



थोड़े समय बाद जो पता चलता है
रचित को अंदर से झकझोर कर देता है

पिता उस लड़की को अपने, घर की बहु बनाएगा
लड़की के घरवालों को, इस तरह दिखाया जाता है
रचित को यह बिल्कुल पसंद नहीं आता,
रचित इस बात की सच्चाई नहीं जानता,
लेकिन, वो दोनों संभावनाओं से सोचता है |

पहली सम्भावना की यह बात सच है
अब सारा व्यवहार हर एक का, समझ आता है
"बहु बनाएगा इसलिए काम सीखा रहा है"
यही हर कोई सोचता है, आपत्ति नहीं होती है
कम पैसे वाले होते है, उनको अच्छी उम्मीद होती है

-- स्थिति पे विचार --
किसी लड़की को,
स्पोर्ट्स बाइक पे कौन घुमाता है?
अपने बेटे के बारे में,
इतनी बातें कौन बताता है?
"लड़कियों से बात करना कम पसंद है"
कौन पिता अपने बेटे के बारे में ऐसी बातें,
किसी लड़की से करता है?

सबको लगा रचित को कुछ,
दिखता नहीं समझ आता नहीं?
रचित पिता को अच्छे से जानता है, तभी को
अलग काम करने को इतना संघर्ष करता है

रिश्ते में जो लगती है बेटियां, उनसे भी
पिता का व्यवहार शिकायत वाला रहता है,
यह लड़की बेटी तो नहीं,
ना ही व्यवहार बेटियों वाला लगता है

जिनसे शिकायत हो बेटियों को भी,
उसके लिये कोई और लड़की तो
कितना दूर का रिश्ता होता है?


-- लड़की के घरवालों पे विचार --
लड़की के परिवार को क्या हो जाता है?

कौनसा पिता अपनी बेटी को,
किसी के साथ भी,
स्पोर्ट्स बाइक पे भेजता है?
एक दो बार नहीं, यह सब महिनो चलता है

हद है या कहूंगा शर्म आनी चाहिए,
अगर एक लड़की का पिता इस तरह,
किसी की बातों में आ जाता है?
पता नहीं कौनसा लालच बुद्धि खा जाता है?
या फिर सारे परिवार को ही,
किसी तरह वश में कर लिया जाता है?


-- लड़की की सोच पे विचार --
लड़की का क्या सोच विचार रहता है?

अपने पिता की उम्र के
किसी व्यक्ति से साथ
इतना वक्त कौन बिताता है?
इतनी बात कौन करता है?
इतना कौन घूमता है?
वो भी स्पोर्ट्स बाइक पे?
एक दो बार नहीं, यह सब महिनो चलता है

-- पिता की सोच पे विचार --
बेटे को पढ़ा नहीं रहा,
किस एरी गेरी लड़की को काम सीखा रहा है?

बेटा पहली कक्षा से ही,
अपनी काबिलियत दिखा रहा है
उसको कुछ करने का मौका न देकर,
किस एरी गेरी लड़की को आगे बढ़ा रहा है?

पत्नी बच्चो के लिए,
एक मिनट का समय दिया नहीं कभी
अब किस एरी गेरी लड़की के लिए,
समय और पेट्रोल जला रहा है?

पत्नी की एक बात नहीं सुनता,
बेटियां घर में अपनी इच्छा तक नहीं बता सकती,
डर और डांट से भरा घर का माहौल बना रखा है,
किस लड़की को स्पोर्ट्स बाइक पे घुमा रहा है?

बहनों और बेटियों के लिए,
वक़्त नहीं कभी संभालता नहीं,
और अजनबियों की जिंदगी बना रहा है?

सोचो अगर सब ऐसे ही आगे बढे,
तो यह सब किस तरफ जा रहा है?

क्या लगा, की सबको,
कुछ दिखता नहीं समझ आता नहीं?
सब चुप है, इज्जत मिल रही है तो,
उसका इस तरह नाजायज फायदा उठा रहा है?



दूसरी सम्भावना की यह बात झूठ है

माना यह बात झुठी होगी
"पिता उस लड़की को अपने, घर की बहु बनाएगा"
यह बात कभी हुई ही नहीं होगी

सबका जो रचित के साथ व्यवहार रहा है,
वो तो यही दर्शाता है की ऐसी कोई बात है,
लेकिन ऐसी किसी बात को जैसे ही नकारते है,
रचित के मन के सारे सवाल फिर से खड़े हो जाते है

-- सारे सवाल --
सबका व्यवहार रचित को,
खुद पे थोड़ा हावी लगता है,
मन में सवाल खड़े करता है,
- अचानक से हर कोई क्यों, इतनी दिलचस्पी दिखा रहा है?
- क्यों पिता रचित का स्वभाव और, उसके बारे में इन सबको बता रहा है?
- लड़की की मदद तो पिता कर रहा है, तो इन सब में रचित को क्यों बीच में लाया जा रहा है?
- हर कोई एकदम से इतना नहीं बदलता, सबको किस बात से प्रेरित किया जा रहा है?
- जैसा व्यवहार हो रहा है, हर कोई नहीं कर सकता, सबके अंदर इतनी हिम्मत कौन और क्यों ला रहा है?

रचित को यह सब, निजी जिंदगी में दखल लगता है

--

अगर ऐसा कुछ नहीं किसी के दिमाग में,
तो पिता तक जो भी था तुम्हारा रिश्ता,
रचित पे क्यों हावी होने लगता है?
किस हक़ से किस रिश्ते से,
रचित पे सबका ध्यान रहता है?

क्या लालच है, क्या षड़यंत्र है सबके पीछे?
क्योंकि साफ तौर से मना करने पर भी,
कोई असर नहीं, सब वैसे ही चला जा रहा है


जो भी हो संभावना, निर्णय आज ही होता है
बात करके देख लिया, अब रचित स्वयं निर्णय करता है
जिस दिन पता चला रचित को, उसी दिन से सब बंद होता है

घर पे अपने कहता है, स्पोर्ट्स बाइक जला रहा हु,
कल सुबह एक नयी स्पोर्ट्स बाइक ला रहा हु,
अगर कोई दिखा नयी स्पोर्ट्स बाइक पे आगे से,
अगर किसी ने आके बात करी उलटी सीधी,
तो नयी वाली भी जलेगी, अभी बता रहा हु,
पैसे नहीं मांग रहा, दस साल से काम कर रहा हु,
सारे पैसे तो में खुद ही संभाल रहा हु

इस दिन के बाद, सब बंद होता है
ना कोई बाइक पे बैठता है
ना कोई रचित पे हावी होता है

--

पिता ने क्या सोचा?
रचित के नाम से लड़की भी ले आएगा अपने लिए?
नाम रचित का होगा और पत्नी अपनी बनाएगा?
सुनके ये सब भयानक और घिनौना लगता है,
लेकिन सारी हरकतों का इशारा तो यही होता है
किसी की पहचान, उसके पुराने व्यवहार से होती है
शुरू से पढ़ो समझो सब एक साथ,
तो एक व्यवस्थित योजना लगती है

सहन करता हूँ, शोषित होता हूँ,
फिर भी चुप रहता हूँ, क्योंकि इज्जत करता हूँ
रिश्ते का ख्याल रखता हूँ
इसका मतलब यह नहीं की
अपना हक़ अपनी इज्जत को नहीं समझता हूँ


इस तरफ कभी कुछ सोचा,
आँख उठायी तो ठीक नहीं रहेगा,
पिता का रिश्ता इस सोच के साथ,
खुद ही ख़तम होगा,
अगर रिश्ता तुमने ख़तम कर दिया
तो फिर मुझे क्या रोकेगा?


आखिर रचित बाइक बेच ही देता है,
बाइक उसके लिए थी ही नहीं
स्पोर्ट्स बाइक तो नाम से रचित की थी
पिता तो रचित के नाम से शायद अपने लिए,
लड़की भी लाने वाला था घर पे

जब सारी हरकतों और माहौल का, इस तरफ इशारा होता है
तब, इंसानियत (क्र.स.3) पे, दुसरा सवाल खड़ा हो जाता है

जब पिता स्वयं इस तरफ, इतना आगे चला जाता है
तब रिश्ते पे चोट (क्र.स.2), लगने जैसा असर होता है



लेकिन माँ ने कभी कुछ कहा क्यों नहीं?
ऐसा व्यवहार और हरकतें पहली बार तो नहीं,
क्या माँ को इतना चुप कर रखा था?

पिछले आठ वर्षों से, सब कुछ ऐसा ही दीखता है
इंसानियत (क्र.स.4) पे, तीसरा सवाल खड़ा हो जाता है



उमर है 21 साल रचित की, 11 वर्षों की कहानी बाकी है
संघर्ष बढ़ता ही जा रहा, 11 और साल निकालने बाकी है

26-02-2023

सन 2009-2010
उम्र 20-21 साल
[परिवार की परिभाषा]
खोलें

किसी अन्य परिवार को देखकर हुए रचित के अनुभव से

-- किसी अन्य परिवार को देखकर हुए रचित के अनुभव से --

एक परिवार
देखता है, आश्चर्य करता है
बातों से पिता बेटों का, दोस्त लगता है
बेटियों से बात पिता, कितने अच्छे से करता है
परिवार में सबकी, पिता इज्जत करता है
सबके साथ बैठता है, टीवी भी देखता है

घर पे पिता, आराम करने को आता है
हरदिन की परेशानी, घर पे नहीं लाता है
अच्छे से बिना डांटे, खाना भी खाता है

लगेगी सारी सामान्य घर की बातें,
की इन सब में नया क्या हो रहा है?
नया यह कि 20 साल का लड़का ये सब,
पहली बार देख और महसूस कर रहा है


पिता काम की परेशानी, दिनभर साझा नहीं करता है
ना ही चिल्लाता है, ना ही कोई एहसान जताता है
अच्छा! तो यह सब किये बिना भी,
जिंदगी में आगे बढ़ा जा सकता है?

कोई डरता नहीं पिता से,
उसके आने से डर के भागता नहीं
हर कोई छोटी छोटी बातें करता है
सारा परिवार एक साथ बैठता है

जो भी बातें हो रही, आगे बढ़ती हुई देखता है
कितनी आसानी से सब कुछ, होते हुए देखता है
ना बातों को घुमाया जा रहा है
ना किसी को निचा दिखाया जा रहा है
रचित के घर पे तो, ऐसा नहीं होता है
अचरज करता है कि, क्या कोई निर्णय
एक बार में भी लिया जा सकता है?


बात बात पे डांट और गुस्से की जगह,
बात बात पे हँसा भी जा सकता है?

पिता से छुप के हँसना होता है,
लेकिन यहाँ तो कोई ऐसा नहीं करता है?

हँसने से सबके लिए कुछ हासिल होता है?
रचित को लगा था, हँसना सिर्फ एक से,
खुशी लेके दूसरे को देना होता है
या फिर हँसने के लिए, कुछ तो खोना होता है


कैसे व्यवहार करते हैं वो सब, आने वाले से
और एक मेरे घर पर तो, सबसे काम करवाते हैं
मेरे घर आये जो कोई, कभी एक दो दिन भी
उसे तो घर-दुकान पे, मजदूरों की तरह लगवाते है


समस्याएं कहाँ नहीं होती,
लेकिन संवाद कितना अच्छा होता है
घर का माहौल कितना शांत रहता है

--


यहाँ और रहना चाहता हु,
जो एहसास हो रहा,
उसको और जीना चाहता हु
लेकिन ज्यादा कहाँ रुकना होता है
यहाँ से जाने पर कितना रोना आता है

काम तो उसे अलग करना ही है,
घर कैसा होता है उसका, एक आदर्श स्थापित होता है
जो रचित की जिंदगी में, समय समय काम आता है

परिवार के अलावा, दोस्ती को भी महसूस करता है
अपने पिता की समझ से बाहर रचित देखता है
अच्छे दोस्त बनते है, दोस्ती का एहसास होता है,
लेकिन निभाने और दोस्ती को जीने का वक़्त,
शहर की दिनचर्या में, पिता कहाँ देता है

शिक्षकों से भी रिश्ता, बहुत खाश होता है
शिक्षकों की बातों से, हमेशा प्रेरित रहता है

थोड़ा थोड़ा हर एक रिश्ता, महसूस करता है
यह सब उसको, हिम्मत देने के लिए बहुत होता है

26-02-2023

सन 2011 - उम्र 22 साल
[ख़ुदकुशी तीन साल बाद]
खोलें

इंसानियत (क्र.स.5) | रिश्ते पे चोट (क्र.स.3 व 4)

काम के साथ रचित, पढाई करता है
यह भी पिता को, सही नहीं लगता है
व्यवहार पिता का तीव्र, उग्र हो जाता है

पिता की बातों का एक उदाहरण:
"मैने तुम्हे पढ़ने दिया गलती करदी
अगर कैसे भी दसवीं में रोक लेता,
तो आज तू दुकान पे बैठा होता"


सारे तरीकों से, रचित को रोका जाता है
रचित को शब्दों से, व्यवहार से तोड़ा जाता है
संघर्ष असहनीय है, रचित अब हार जाता है

एक बार फिर से,
रिश्ते पे चोट (क्र.स.3) का, गहरा असर होता है

--

पिता के साथ काम नहीं कर सकता,
पिता के जैसा नहीं बन सकता,
पिता के जैसा ना समझ ले कोई इसलिए,
किसी भी लड़की से बात करने तक से डरता


रिश्ते में जो लगती है बेटियां,
पिता से शिकायत तो उनको भी थी
पिता की नजर व्यवहार से असहज,
और गलत तरीके से,
छूने की कोशिश भी महसूस हुई थी

इतने मसले इतनी हरकते,
दुकान पे और बाहर वो करता,
कम से कम अपनों को तो महफ़ूज़ रखता?
पिता के रूप में कैसा इंसान पाया है,
समझे अगर राक्षस जैसा लेकिन,
राक्षक भी परिवार राक्षस तो होता है

इंसानियत (क्र.स.5) पे, चौथा सवाल खड़ा हो जाता है
रिश्ते पे चोट (क्र.स.4), लगने जैसा असर होता है

--

पढ़ने नहीं देगा पिता तय हो चुका है
दुसरा विकल्प मरने का ही बचा है

मरना तो है लेकिन,
ऐसे ही नहीं सब लिख के, जिम्मेदार ठहरा के
ऐसा करें तो पिता का गुस्सा और फूटेगा
सारे परिवार पर अत्याचार करेगा
और इसी कारण, यह भी नहीं कर सकते है

जी सकते नहीं खुद के लिए,
मर सकते नहीं परिवार के लिए
तो फिर नया रास्ता अपनाते है

--

पहले तो रचित अपने आप को तैयार करता है
अपने सारे दस्तावेज, जो दसवीं से बाद के है
उनको जला देता है
अपनी सारी किताबे, रजिस्टर और पढाई की
हर एक चीज़ जला देता है
सारी मार्कशीट अंकतालिकाएं, और सब कुछ
दसवीं के बाद का जला देता है

पढ़ने वाला बच्चा होता है,
एक ही तो काम है, जिसमे उसका मन लगता है
इसीलिए जलने में भी, बहुत वक़्त लगता है
सब जलने पर, पुरा एक कमरा खाली होता है

अब रचित के पास, कोई दस्तावेज नहीं होता है
जिससे वह बता सके, की दसवीं के आगे पढ़ा है

1
घर पे बताता है की,
अब वो पढ़ने की जिद छोड़ देगा
दसवीं से आगे का सब जला चुका है,
और आगे से कुछ नहीं बोलेगा
दुकान पे बैठेगा हमेशा, इस तरह
पिता की दोनों इच्छा पूरी करेगा

2
अब दुसरा काम अपने से छोटो के लिए,
ज्यादा तो कुछ नहीं कर पाता है लेकिन
घर पे बताता है की, रचित दुकान पे काम करेगा
बाकि हर कोई, शहर ही रहेगा और वहीं पढ़ेगा

3
एक और बात बताता है की,
उसकी सगाई या शादी की बात भी
तीन साल तक कोई नहीं करेगा


मरना तय होता ही है,
जितना हो सके, अपने से छोटो को आगे बढ़ाएगा,
तीन साल में शहर से उनकी डिग्री करवाएगा,
फिर उनकी आगे की जिंदगी उनके हाथ में,
तीन साल बाद जब डिग्री कम्पलीट होगी,
तब वो ख़ुदकुशी का रास्ता अपनाएगा

किसी और को, यहाँ नहीं फसायेगा
इसीलिए कोई सगाई या शादी नहीं रचाएगा

--

एक पल या एक घंटे भर तक ही,
यह सब सिमित नहीं रहता है
आने वाले तीन वर्षों तक,
खुद को तैयार कर लिया होता है
गांव में अकेला, सबको शहर भेज देता है
दिनभर दुकान, खाना भी खुद ही बनाता है
पढ़ने कुछ करने या शादी के ही,
सारे सपनो को रोक के जीता है
ऐसी स्थिति में वो एक महीना रहता है

कंप्यूटर पर, गाने बहुत सुनता था
विज्ञान-कल्पना की फिल्में देखता था
अब सब बंद हो जाता है
ना गानो की धुन से, कोई दुःख भुलाना होता है
ना कोई फिल्म देखके, कल्पनाओं में खोना होता है

मरना तो है लेकिन वो भी व्यर्थ नहीं,
उसने दर्द बहुत सारा झेला था,
अपनों को बचाके रखना था,
इसलिए रुकना जरुरी था,
ऐसा ना हो की रचित के जाने के बाद
और बढ़ जाये जुल्म सब पे,
थोड़ा संभल जाये सब,
बस तब तक जीना था



-- स्थिति पे विचार --

जब सब कुछ खतम करना होता है,
दर्द या तकलीफ को सहन नहीं कर पाना,
उसका बड़ा और मुख्य कारण होता है
और,
सब ख़तम है, इस सोच के साथ,
तीन साल और निकालने को तैयार,
यह एक अलग स्तर का संघर्ष होता है


तीन साल तो नहीं, एक महीना निकाला था
एक पल में भी मन में, कितने विचार आते है
उन सब विचारों को, रचित ने कैसे संभाला था?

दुसरा पड़ाव समाप्त

2006-2011

10-03-2023

सन 2011-12
[कंपनी सेक्रेटरी-एग्जीक्यूटिव]
खोलें


-- पूर्व में --
"सब ख़तम है, इस सोच के साथ,
तीन साल और निकालने को तैयार,
यह एक अलग स्तर का संघर्ष होता है


तीन साल तो नहीं, एक महीना निकाला था
एक पल में भी मन में, कितने विचार आते है
उन सब विचारों को, रचित ने कैसे संभाला था?"

रचित तो नहीं थकता,
एक महीने से ज्यादा, पिता नहीं रह पाता है,
क्या पता पिता को क्या डर सताता है, या शायद
जो मिल रहा था गांव से, वह सब बंद हो जाता है?
पिता की आदतों-अतीत से तो, यही समझ आता है
क्यूकी रचित किसी को, गांव आने कहां देता है
लगातार काम करता देख रचित को, वो डर जाता है?


जब सपने सारे ही ख़तम, तो कहीं नहीं भटकता मन
अगर फिर भी जिन्दा हो तो, एक मशीन बन जाते हो |
दुखी मन को संभालने, काम में लगे रहते हो
लगातार काम करने पर, परिणाम भी बेहतर पाते हो |

अतीत से लगता नहीं, की रचित का भला सोचता है,
लेकिन पिता अब रचित को, वापस से पढ़ाना चाहता है
रचित ऐसे कहां मानता है,
"काम कर रहा पैसे कमा रहा हु,
किसी को आने की जरुरत नहीं,
और पैसे कभी कम पड़ेंगे नहीं,
अगर इस बार पढ़ने जाता हु,
तो साथ में काम नहीं ले जाता हु,
शहर किसी दूर जाना चाहता हु"


दूर तो नहीं भेजा जाता, नजदीक शहर में जाता है
साथ में कुछ वादों के, ये सौदा पक्का होता है
दो साल मिलेंगे पढ़ने को, और फिर इतना कमायेगा,
की पिता को आगे से, कभी काम नहीं करना पड़ेगा



फिर से उम्मीद लेके नयी, शहर आता है
आते ही कुछ दिनों से, मनोबल बढ़ जाता है
मेहनत और संघर्ष का, फल उसको मिलता है
एक परीक्षा दी हुई थी, उसका परिणाम आता है
एक ही बार में वो,
सी एस एग्जीक्यूटिव परीक्षा (2011)
को पार कर जाता है
एक ही कोशिश (फर्स्ट एटेम्पट) में,
सारे पेपर उत्तीर्ण करता है


आगे की पढ़ाई शहर में, सारे विषयो की नहीं होती है
फिर भी जितना हो सके, बाकि स्वयं से ही पढ़ता है
सिर्फ पढ़ना होता है, कहीं भी आना जाना बंद रहता है

किताबें और शिक्षक ही, सब कुछ होता है
ऑनलाइन कोचिंग तो, अभी बहुत दूर है,
ना व्हाट्सअप, ना टचस्क्रीन फ़ोन होता है
ना यूट्यूब पे कोई भी चैनल, अभी बना होता है
ना ही इंटरनेट इतना तेज, और सस्ता होता है

जिस तरह से चल रहा होता, यह साल बेहतर जाता है
बिना भटके समय व्यर्थ करे, एक ही लक्ष्य रखता है
पिता की बातों पे ध्यान नहीं, पढाई में लगा रहता है

इस उम्र में सब हसते है मजे करते है,
दोस्त बनाते शादियों में जाते, पढ़ते है,
रचित के लिए एक ही सच होता है,
"एक बार इन सब से निकल जाऊ
फिर अपना बचपन भी जीऊंगा
अच्छी सी लड़की से शादी करूँगा
जिंदगी में सारे सपने पुरे करूँगा"


शिक्षकों की कृपा से, सी एस एग्जीक्यूटिव परीक्षा,
उत्तीर्ण हुई एक बार में, लक्ष्य अब आखिरी परीक्षा,
सी एस प्रोफ़ेशनल, एक ही बार में उत्तीर्ण करना होता है
उत्तीर्ण करके जल्दी से, कंपनी सचिव बनना होता है

10-03-2023

सन 2012-13
[कंपनी सेक्रेटरी-प्रोफ़ेशनल]
खोलें

अपने लक्ष्य पे चल रहा होता है, सब सही लग रहा होता है
शादी की बातें शुरू होती है, यह नया तो नहीं होता है
शादी करने से पहले, खुद कमाना चाहता है
एक साल रुकता लेकिन, पिता की बातों में आ जाता है
पिता का कहना होता है, बेटियां है मेरे वैसे ही रखूँगा
जब तक रचित पढ़ेगा, सबका खर्चा उठा लूंगा

बातों तक तो सही था लेकिन,
शादी की तैयारियां शुरू हो जाती है
रचित लक्ष्य से भटकना नहीं चाहता है,
वो पढ़ने के लिए घर से दूर, अपने ननिहाल चला जाता है
बचपन में नहीं रखा एक दिन भी, अब दो महीने वहीं पढ़ता है
परीक्षा भी मामा के घर से, फिर ही अपने घर आता है


परीक्षा देके घर आता है,
उसी महीने शादी और फिर अगले महीने,
मुख्य परीक्षा का परिणाम आता है
सी एस प्रोफ़ेशनल परीक्षा (2012)
एक ही बार में पार कर जाता है,
एक ही कोशिश (फर्स्ट एटेम्पट) में,
इस बार भी सारे पेपर उत्तीर्ण करता है


सब कुछ सही, सब कुछ बेहतर लगता है
मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण हो गयी अच्छे से,
अब बस ट्रेनिंग, फिर अपना काम करना होता है
आखिर कर दिखाया, जिंदगी से वो खुश होता है
ट्रेनिंग के लिए, कोशिश शुरू करता है,
जल्दी से जल्दी कही पे, जॉइन करना चाहता है
अब उसका कंपनी सचिव बनाना तय होता है


-- सी एस (CS) --
"कम्पनी सचिव (Company Secretary) निजी क्षेत्र की कम्पनियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान का एक उच्च पद है। यह प्रायः प्रबन्धक या उससे भी ऊँचा पद है।"
यहाँ क्लिक करके विकिपीडिया पर देखे

22-03-2023

सन 2013
[पिता शब्द की मर्यादा]
खोलें

इंसानियत (क्र.स.6 व 7 आखिरी) | रिश्ते पे चोट (क्र.स.5 व 6 आखिरी)


-- पूर्व में --
"परीक्षा देके घर आता है,
उसी महीने शादी और फिर अगले महीने,
मुख्य परीक्षा का परिणाम आता है
सी एस प्रोफ़ेशनल परीक्षा (2012)
एक ही बार में पार कर जाता है,...
मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण हो गयी अच्छे से,
अब बस ट्रेनिंग, फिर अपना काम करना होता है...
जल्दी से जल्दी कही पे, जॉइन करना चाहता है
अब उसका कंपनी सचिव बनाना तय होता है"


खुश होता है, आखिर सब सही हो गया
छह-सात वर्षों का, संघर्ष पूरा हो गया
ट्रेनिंग पूरी करते ही, सीएस बन जायेगा
सब ठीक हो जायेगा, पैसे भी बहुत कमाएगा
लेकिन पिता का इरादा, कुछ और होता है
पैसा-खर्चा सारा, पूरी तरह से बंद कर देता है
पिता साफ तौर पे, ट्रेनिंग के लिए मना कर देता है


पिता कहता है,
"बंद करो पढाई,
हो गई जितनी होनी थी
दोनो का खर्चा नहीं है
एक भी पैसा नहीं मिलेगा,
खुद ही कमाना और खाना होगा"


लेकिन पढ़ाई तो हो चुकी है,
सिर्फ ट्रेनिंग करके सीएस बनना है,
रचित पिता को समझाता है मनाता है,
कंपनी सचिव बनना तय है बताता है,
कितना अच्छा पद होगा, समझाता है,
पिता साफ मना कर चुका होता है,
पिता को कुछ भी कहां सुनना होता है

एक शिक्षक का फ़ोन आता है, उनकी बातों से पता चलता है
रचित का सीएस उत्तीर्ण करना, पिता को अच्छा नहीं लगता है
"शिक्षक बधाई देता है, पिता खुशी जाहिर नहीं करता है
और बात को बदल देता है"


जब किसी को रोक न सको (1999-2011)
तो नयी रणनीति अपनाना
एक बार विश्वाश में लेकर (2012)
फिर बड़ा घात करना (2013)

पिता का शायद यही मानस होता है
रचित को पूरा विश्वास में लेके,
एक साथ चार प्रहार करता है
"पढ़ाई-खाना/रहना-आरोप-बुरा स्पर्श"



-- पढ़ाई --
पिछले बारह वर्षों से, दुकान पे कमा रहा है
और अब एक साल ट्रेनिंग के वक्त में,
पिता खाने रहने का खर्चा भी नहीं देगा
रचित के कमाए हुए पैसे भी कई गुना ज्यादा होंगे (1999-2011)
जितने रचित को अब एक साल में चाहिए होंगे

ट्रेनिंग पुरी होने पर सीएस बन जाता
जितने दुकान पे पिता कमा रहा
उससे तो ज्यादा कमाता


-- खाना/रहना --
शादी के लिए भी रचित, एक साल रुकता लेकिन
दोनो का खर्चा उठाएगा, पिता खुद ही तो कहता है
एक महीना ही हुआ शादी को, सब मना कर देता है
"पिता का कहना होता है, बेटियां है मेरे वैसे ही रखूँगा
जब तक रचित पढ़ेगा, सबका खर्चा उठा लूंगा"

"सन 2012-13 [कंपनी सेक्रेटरी-प्रोफ़ेशनल]"

-- आरोप --
इसी समय में पिता, मदद के लिये दुकान बुलाता है
"पुरे साल का काम ख़राब कर दिया" आरोप लगाता है

आरोप

फॉर्म भरने का काम था, जिसमे रचित को कुछ दिन मदद के लिए बुलाया | रचित का काम सिर्फ फॉर्म भरने का था, वो पुरे साल वहाँ नहीं था, पिता ही हमेशा गिनती करते, जमा करवाते। आखिरी तारीख को भी पिता दिनभर फॉर्म जमा करवा रहे थे, लेकिन शाम को रचित से लड़ते है की रचित ने दो फॉर्म नहीं भरे जिससे पिता का पूरा साल खराब हो गया। पिता यह बात पूरे दिन क्यों नहीं कहते? और आखिरी तारीख को शाम हो जाने के बाद क्यों? अगर यह जरूरी था, तो पिता खुद ही फॉर्म भरते? हमेशा तो गणना करते हैं, फिर दो फॉर्म पीछे रहने का आरोप रचित पर क्यों?


अपने बच्चों के साथ, ऐसा कौन करता है?
इन सब के पीछे, पिता का क्या मकसद होता है?
रिश्ते पे चोट (क्र.स.5) पिता, बहुत गहरी लगाता है
इंसानियत (क्र.स.6) पे भी, पांचवा सवाल खड़ा हो जाता है

-- मदद --
पिता हित में नहीं सोचता रचित के,
यह तो बहुत ही साफ नजर आता है
सब कुछ एक व्यस्थित योजना लगता है
किससे मदद ले रचित? कितना अकेला होता है

किससे मदद ले रचित? रिश्तेदार परिवार वालो से?
रिश्तेदार परिवार सबको, पिता बचपन से ही दूर रखता है
"सन 2004 - उम्र 15 साल [अपनापन]"
जानते एक दूसरे को सब है लेकिन, मन की बात
दोनों तरफ से कोई भी नहीं कर सकता है |

--

-- निर्णय 1 नया काम --

वक़्त नहीं लगता उसको निर्णय लेने में
कंपनी सचिव तो नहीं बन पाएगा
खुद ही अब कुछ काम करना होगा
खुद के सपने है जिंदगी को लेके और
पत्नी का ध्यान भी अकेले ही रखना होगा


जिंदगी जीना चाहता है, सारी दुनिया घूमना चाहता है
दो चार महीने वो, शादी की खर्ची से काम चलाता है
कुछ पैसे रचना (पत्नी) की बैंक में होते हैं
उससे वो नया कंप्यूटर लाता है
खुद ही नया काम शुरू करता है,
और इतने कम समय में वो,
पैसे कमाना शुरू हो जाता है
लेकिन दुकान वो कभी नहीं जाता है

नयी शादी हुई है, घूमना फिरना और
सबके यहाँ आना जाना नहीं होता है,
क्योंकि काम नया होता है,
उसको अच्छे से करना होता है
जिम्मेदारी लेके वो, डरा हुआ तो रहता है
और पिता के खिलाफ भी तो, चलना होता है
रचित के रिश्तेदारों से पूछो, पिता के खिलाफ
एक कदम भी कैसा होता है

--


रचित को,
अच्छे पद (सीएस) के लिए उत्तीर्ण हो गया, अब काम सिखने (ट्रेनिंग) की जरुरत होती है
नयी शादी हुई है, पैसे भी बहुत है घर में तो, अच्छे से जीने खुश रहने की जरुरत होती है

होता यह है की,
रचित को खाने के लिए पैसे कमाना शुरू करना पड़ता है,
रचित दुकान क्यों नहीं चला जाता?
क्योंकि जिस तरह से जिया आज तक
उससे बेहतर उसको मरना लगता है
(1999-2011)

सिर्फ दो महीने हुए शादी को और पढाई पूरी हुए,
जिंदगी के बारे में कितने सपने होंगे,
और यह सब क्या हो जाता है?
इस सब का जिम्मेदार कौन होता है?

इतना काफी नहीं होता क्या पिता के लिए?
फिर भी पिता अभी कहां रुकता है


रचित घर में ही रह रहा होता है
अपने नए काम में लगा होता है

पिता से पैसे लेने बंद कर चुका
कोई शिकायत नहीं किसी से
जो भी हुआ सब भूल जाता है
खुश रहता है, मेहनत करता है

कुछ समय निकलता है
पिता अभी कहां रुकता है
पहले तीन प्रहारों से टुटा नहीं रचित,
"पढ़ाई-खाना/रहना-आरोप-बुरा स्पर्श"
चौथा प्रहार करने को पिता तैयार होता है

चौथा प्रहार रचना (पत्नी) पे होता है
प्रणाम करने पर पिता का छूना,
और कहना
"बेटी जैसी हो गले लग सकते है"
रचना को असहज महसूस होता है
रचित को बताती है, कि गलत लगता है


बेटी जैसी कैसे हुई?

पिता ने तो शादी होते ही, खाना पीना भी बंद कर दिया,
पति (रचित) का अच्छा पद (सीएस), वो भी छीन लिया
सब कुछ सही था जिंदगी की कितनी,
बेहतर शुरुआत होती वो सब रोक दिया
पति (रचित) कितना आगे बढ़ा हुआ था जिंदगी में,
उसको शुन्य पर लाकर छोड़ दिया
और कहते है बेटी जैसी हो,

या फिर पिता शायद बेटी को भी, ऐसे ही रखता होगा
इसीलिए ऐसा कहना उसको, सही लगा होगा

और जिस समाज में रचित रहता है,
उसमें बहु को गले कौन लगाता है?
हिम्मत है रचना और रचित में जो,
पिता को कभी आगे नहीं बढ़ने देते है

देखना है की वही समाज, रचना और रचित की
हिम्मत को कितना बल देता है
या फिर उनको समाज का डर दिखाता है
देखना है की वही समाज, अपनी क्या पहचान करवाता है

रचना को असहज महसूस होता है
रचित को बताती है, कि गलत लगता है
समझने में रचित को, वक़्त नहीं लगता है
रचित महिलाओ के प्रति, पिता का व्यवहार जानता है


ऐसी हरकतों से पिता खुद ही,
रिश्ते पे आखिरी चोट (क्र.स.6 आखिरी) मारता है
इंसानियत पे सवाल तो बहुत बार उठ चुके, अब पिता
इंसानियत (क्र.स.7 आखिरी) की परिभाषा से बाहर हो जाता है

आखिर पिता क्या चाहता है?
यहाँ एक सवाल खड़ा होता है
'पिता' होने का यह इंसान कौनसा फर्ज निभाता है?

तीसरा पड़ाव समाप्त

2011-2013

22-03-2023

सन 2013
[रचित के निर्णय]
खोलें

मौका सुधार का (क्र.स.1 व 2)

एक बार फिर से पिता के कारण जिंदगी में इतनी मुश्किलें, मर भी जाये लेकिन अब तो दो है, क्यों मरे | ये पहली बार नहीं है की पिता के कारण मरने की स्थिति बन रही है, पिता तो रुक ही नहीं रहा, पिता नहीं हैवान है |
फिर भी रचित हिम्मत करके इस सब से दूर रहने के लिए कुछ सोचता है कोशिश करता है |

पहले भी बड़े निर्णय ले चुका होता है
"नहीं लगा सही बच्चे को, समझ आ गया
काम अब नहीं साथ करना"
(2004-06)
"अगर रिश्ता तुमने ख़तम कर दिया
तो फिर मुझे क्या रोकेगा?
"
(2009-10)
"सब ख़तम है, इस सोच के साथ,
तीन साल और निकालने को तैयार,
यह एक अलग स्तर का संघर्ष होता है"
(2011)

1 - कुछ समय पहले ही पिता ने पैसे देने बंद करे थे, तो अपने आप से काम करने का निर्णय तो लेकर ही चल रहा था |

और

2 - रचना को प्रणाम बंद करने का कहता है |
3 - हमेशा दूर रहने और बात ही नहीं करने को कहता है |
4 - अब आगे परिवार बढ़ाने से पहले कमाएगा निर्णय करता है |
5 - घर में कुछ बड़े काम बाकी है इसीलिए गलत छूने की बात को अभी के लिए किसी से नहीं कहना उसको सही लगता है, रचना के पीहर भी नहीं |


2
प्रणाम करना हमेशा के लिए बंद कर देता है,
ना बात करनी, ना प्रणाम करना जरुरी अब से,
सबसे जरुरी, दूर रहना व सुरक्षित महसूस करना
और इस तरह फिर से कभी ऐसा कुछ नहीं होता है
3
घर पे बताता है,
रचना अब बात नहीं करेगी पिता से,
पुराने ज़माने के जैसे, ससुर से नहीं बोलेगी
कहते है समझदार को इशारा काफी होता है
यह पिता के लिए, पहला मौका सुधार का (क्र.स.1) होता है
4
भविष्य अनिश्चित और डर भी है
अकेला होता तो मर जाता, लेकिन
अब रचना भी है तो ऐसा नहीं होगा
और जब तक अच्छे पैसे नहीं कमाएगा
तब तक परिवार आगे नहीं बढ़ाएगा
पिता से अब कभी धोखा नहीं खायेगा
5
घर में कुछ बड़े समारोह होने है,
तब तक इस बात को, अपने तक ही रखेगा
रचना के पीहर में भी, अभी बात नहीं करेगा
यह पिता के लिए दूसरा मौका सुधार का (क्र.स.2) होगा



इस समय पर भी गौर करना जरूरी है |
अभी 2013 में यहाँ किसी के पास टच-स्क्रीन फोन नहीं है, व्हाट्सएप नहीं है, यूट्यूब नहीं है, सस्ता इंटरनेट भी अभी नहीं आया है | इस समय में जानकारी लेना किसी से बात करना ज्यादातर मिलकर होता है |

22-03-2023, 31-07-2023

सन 2014-2020
[पिता से बार बार बात, और आखिर में रिश्ता ख़तम]
खोलें


-- पूर्व में --
रचित के निर्णय
1 - कुछ समय पहले ही पिता ने पैसे देने बंद करे थे, तो अपने आप से काम करने का निर्णय तो लेकर ही चल रहा था |
2 - रचना को प्रणाम बंद करने का कहता है |
3 - हमेशा दूर रहने और बात ही नहीं करने को कहता है |
4 - अब आगे परिवार बढ़ाने से पहले कमाएगा निर्णय करता है |
5 - घर में कुछ बड़े काम बाकी है इसीलिए गलत छूने की बात को अभी के लिए किसी से नहीं कहना उसको सही लगता है, रचना के पीहर भी नहीं |

ये आखिरी मौका होता है पिता के लिए रुकने का अब ओर परेशान नहीं करने का, या अगर अब भी पिता परेशान करना बंद ना करे तो शायद रचित टूट जाये, जिंदगी से हार जाये |

लेकिन पिता परेशान करना बंद नहीं करता |

इन सब निर्णयों से रचित हमेशा के लिए रचना को दूर रख पाता है, सुरक्षित रख पाता है,
लेकिन जितने भी निर्णय रचित ने लिए हर एक का पिता गलत उपयोग करता है, रचित और रचना को परेशान करता रहता है | जैसे

1 - कुछ समय पहले ही पिता ने पैसे देने बंद करे थे, तो अपने आप से काम करने का निर्णय तो लेकर ही चल रहा था | पैसे देने तो बंद कर दिए लेकिन घर में रह रहे थे तो स्वाभाविक है कि जो खाने-पीने का रहने का बिजली का बिल का खर्चा घर से ही चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उन सब को भी बंद कर दिया, साफ तौर से मना कर दिया कि अपने खाने-पीने का सामान खुद लाओ पिता नहीं लाएंगे, और बिजली का बिल ज्यादा आता है इसलिए वो भी पिता नहीं भरेंगे |

2 व 3 - प्रणाम बंद करना एक सही कदम था, शायद वक़्त के साथ सुधार हो जाता अगर पिता इससे कुछ समझता सीखता लेकिन शिकायत लेके पिता ससुराल पहुँच जाता है, कहता है "प्रणाम नहीं करती बहु, कैसे संस्कार दिए", "सास-ससुर पसंद नहीं बहु को, आते है तो बहु रसोई में या कमरे में चली जाती है|" रचना और रचित को प्रणाम करने के लिए डांटा, समझाया जाता है, नहीं मानने पर ससुराल वालों को गुस्सा आता है, काफी वर्षों तक इसका असर रहता है, चुप रहना घर के लिए (निर्णय 5 के लिए), बहुत महंगा पड़ता है | "कहते है लड़को को इज्जत सिर्फ ससुराल में मिलती है, पिता तो रचित से वो भी छीन लेता है |"

4 - जब तक नहीं कमाएगा परिवार आगे बढ़ाने का निर्णय वक़्त के साथ यह बहुत सही साबित होता है, लेकिन पिता के शिकायतें "परिवार आगे नहीं बढ़ा रहे" "प्रणाम भी नहीं कर रहे" "दुकान का काम भी छोड़ दिया" नए शादी-शुदा जोड़े की ऐसी शिकायते, अब सारे परिवार और ससुराल में पिता फैलाता है | शिकायतें है तो सवाल खड़े होते है, ससुराल से तो अब और ज्यादा दबाव बनता है, दोनों सबकी नजर में बुरे बनने लगते है, किसी को कुछ बताना चाहे भी तो, अभी बताना सही नहीं लगता है, बस दोनों (रचना और रचित) सहन करते रहते है | और किसी से अभी तक इतना खुलकर मिले ही नहीं जिंदगी में की ऐसी बातें कर सके, क्या पता वो पिता का ही पक्ष ले और परेशानिया और बढ़ जाए |

5 - घर में कुछ बड़े काम बाकी है, इसलिए गलत छूने की बात को अभी के लिए किसी से नहीं कहना उसको सही लगता है। रचना के पीहर भी नहीं। कोशिशें तो यह सही सोच कर करते हैं, रचित और रचना, घर में तो सबको पता भी होता है। घर में बड़ा काम हो जाए, घर वाले तैयार हो जाएं, थोड़ा और थोड़ा और करके साल पर साल निकालते हैं। हर साल यहीं सोच के, ऐसा करते करते आठ-दस साल निकल जाते हैं। चुप रहते हैं, सहन करते हैं, अपनों के लिए रुके थे, अपनों से ही खुदको अलग खड़ा पाते हैं ।

--

2014 - पिता से बात 01

इतना सब कुछ एक ही साल में हो जाता है | शादी के पहले ही साल में, जहाँ पहले साल को सबसे बेहतर माना जाता हैं शादी में, जिम्मेदारियों से थोड़ा आजाद, वहाँ रचित के लिए इतने संघर्ष, उलझनें और परेशानियां होती है, पिता के कारण | इतना सब कुछ होने के बाद भी रचना साथ रहती है, एक लड़की से और क्या चाहिए | काश यह बात परिवार को कभी समझ आती, और रचना को मदद मिलती या इज्जत मिलती जितनी उसने कमाई है |

अब इस तरह से लड़ना और सहन करना मुमकिन ही नहीं, अब नहीं जी सकते | अब मरना है लेकिन बहुत गुस्सा भी है, पिता को सबक कैसे सिखाये, पिता ऐसा कैसे कर सकता है | पहली बार आवाज उठाता है उसको मरना ही है, तो सब कह दे क्योंकि कुछ होगा यह तो मुमकिन ही नहीं, लेकिन अब पिता का डर रहेगा कैसे, फिर क्या परेशान करेगा अब पिता, अगर जिन्दा ही नहीं रहेगा तो, रचित उनको धमकाता है की पिता ने पूरी जिंदगी रचित के साथ गलत करा उनको यह सब ठीक करना होगा और आगे से तंग करना बंद करना होगा नहीं तो वो कुछ भी करेगा अब |

बिता हुआ कैसे ठीक करे तो, इसके लिए रचित कहता है की पिता ने उसे पढ़ने नहीं दिया, सब अपने बच्चो पर खर्च करते है पढ़ने के लिए पैसे, उल्टा रचित ने तो इतने साल दुकान पर कमा कर दिए है | उनको अब पांच वर्ष के लिए पढ़ने के पैसे देने होंगे रचित को, वो भी एक साथ क्यूंकि वो पिता पर विश्वास नहीं कर सकता | रचित अब पढ़ेगा तो नहीं लेकिन उसका काम नया है और जब तक कमाना शुरू करे घर खर्च में पैसे काम लेगा और अगर नहीं दे तो भी कोई जोर नहीं अब रचित को जो सही लगेगा वो वही करेगा | इस बातचीत के बाद इस बात पर सहमति होती है की,

- पिता अब रचित को ओर परेशान नहीं करेगा बिलकुल भी |
- और पिता रचित को दस लाख रूपये देगा, इस बात के की इतना खर्चा पढाई के समय में चार-पांच वर्ष में लगता है, रचित की गणना के अनुसार यह दो लोगो के शहर में रहने के लिए चार-पांच वर्ष का खर्चा (पंद्रह-बिस हजार महीना)| और रचित ने इससे ज्यादा तो कमाए भी है, बारह वर्षों में (पिता की सम्पति को देखे तो यह तीन-चार प्रतिशत हिस्सा भी नहीं उस वक़्त का) | रचित अब पढ़ेगा तो नहीं क्यूंकि पढाई हो चुकी है लेकिन अब फिर से वो बची हुई सी एस की ट्रेनिंग करने के लिए भी नहीं जा सकता | क्योंकि छोड़े हुए दो साल हो गए और अपने नए काम करते हुए भी | अब अगर काम बंद करदे और ट्रेनिंग शुरू करे, मतलब थोड़ा बहुत कमाना आज से ही बंद हो जायेगा और ट्रेनिंग किसी वजह से पूरी नहीं हो तो? पिता का विश्वाश नहीं है | और अब तो रचना को घर पर नहीं छोड़ सकता सुरक्षित नहीं महसूस होता, पास ही रहना है और अपना काम करना है, उसमे अभी समय लगेगा पैसे कमाने में, इसलिए तब तक के लिए दो लोगो के घर खर्च में वो पैसे काम लेगा रचित, आने वाले चार पांच वर्षों तक, और वो सभी के लिए थे, जो भी घर में रहता है आता जाता अब सारे घर का सारा खर्च रचित ही उन्ही पैसो से देता है |


रचित ने पिता से पैसे लिए थे, लेकिन शादी के 18 महीने बाद, तब तक तो खाने का खर्चा भी कर पाना मुश्किल होता था |

--

2014-2018 पिता से बात 01 - उसके बाद की परेशानिया

पिता चाहता तो शायद सुधार करता, लेकिन अभी भी वो वैसा ही रहता है | लेकिन पिता अब रचित को कैसे परेशान कर सकता है आखिर? पढाई हो चुकी, काम भी रचित का अपना है, रचना को तो दूर ही रख रहा है चाहे ससुराल में रिश्तेदारों में कितनी शिकायतें की पिता ने, परिवार आगे बढ़ा नहीं रहा, और तो और अब उसके पास आराम से चार पांच वर्ष के लिए खाने के पैसे है |

लेकिन पिता के लिए अब बचता है छीनने के लिए
- हर दिन की शांति,
- पिता का घर जिसमे रचित रहता है,
- रचित का परिवार और सभी रिश्तेदार जिनको रचित के खिलाफ कर सकता है,

पिता की आदत बिलकुल नहीं बदलती, सबको रचित के खिलाफ भड़काना अभी भी चालू है,
- कभी किसी को रचित को समझाने के लिए घर बुलाता है,
- कभी रचित के काम पर सवाल खड़े करता है,
- कभी कहता है की रचित कर्जे में पिता की सारी सम्पति डूबा देगा,
- कभी रचित पर दबाव बनाता है की रचित अपने नाना से सम्पति का हिसाब मांगे क्यूंकि पिता को सही नहीं लग रहा, ये बात सुनने में बेतुकी है लेकिन पिता इस पर कई वर्ष तक लड़ता रहता है,
- एक बार तो पिता ने अपना ही घर रचित को बेचना चाहा, थोड़ा सस्ते में क्यूंकि रचित उनका बेटा है, और किस्तों पर क्यूंकि उनको विश्वास है रचित पर |
- कभी रचित को धमकाता है की तेरे बच्चे होंगे तब उनको तुझसे खिलाफ कर दूंगा, ये भी अजीब बातें है अपने बेटे को ऐसा कौन कहता है लेकिन ये पिता ऐसा ही है | इससे भी घटिया बात है आगे वाली

- पिता किसी के द्वारा रचित पर दबाव बनवाता है परिवार आगे बढ़ाने को लेकर, बहुत ही घटिया तरीके से, वो इंसान पहले दोस्त बनता है फिर धमकिया शुरू कर देता है की अगर परिवार आगे नहीं बढ़ाया तो में तुम्हे कभी ऐसा करने ही नहीं दूंगा, क्यूंकि उसका काम बच्चों के हॉस्पिटल से सम्बंधित ही होता है, तो उसका कहना होता है की मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारे लिए बहुत मुश्किलें आने वाली है, सब जगह मेरी चलती है, तुम बाद में कुछ नहीं कर पाओगे |
"अगर मेरे कहने पर तू नहीं माना तो
आगे से तू कभी ऐसा कर भी नहीं पायेगा
पुरे शहर में मेरी चलती है,
हर एक हॉस्पिटल में मेरी पहुँच है,
मेरे से पन्गा लिया तो बच नहीं पायेगा
मेरी बात मानले वर्ना तेरा बच्चा कभी नहीं हो पायेगा"

रचित उसकी बातों में नहीं आता लेकिन परेशान तो होता ही है, और इसके कुछ वर्ष बाद miscarriage भी हो जाता है | और परिवार का रवैया misscarriage को लेकर ठीक नहीं होता, तो क्या सच में उसने और पिता ने मिलाकर ऐसा करवाया?

- और पिता खुद ने भी कहा था गुस्से में एक बार रचित को ही की तुम बच्चे पैदा कर नहीं रहे, करो फिर मैं तुम्हारे बच्चों को तुमसे अलग करके दिखाऊंगा...|

घर में हर दिन का यही सब चल रहा होता है, इसीलिए रचित घर छोड़ कर किराये के घर में शिफ्ट हो जाता है, और वहाँ भी पिता परेशान करने से कहाँ रुकता है |


-- नया काम व जिंदगी --
कैसी होती है इन सब के बिच (2013-2016)

जिंदगी शुन्य से शुरू करता है,
अपने नए काम पे ध्यान देता है,

काम नया होता है कुछ समय लगता है,
थोड़ा सा कमाता, अपने काम में ही लगाता है,
नए कंप्यूटर लाता है, आगे बढ़ता है

थोड़े पैसे अपनी कमाई के, घूमने में लगाता है,
घूमना भी शादी के, तीन साल बाद हो पाता है,
क्योंकि पहले खुदके पैसे नहीं होते और,
पिता के पैसे सिर्फ घर खर्च के लिए ही रखता है

खुश रहने जिंदगी जीने की, पूरी कोशिश करता है
दोस्तों के साथ इस साल, अच्छा वक़्त बिताता है
चार साल पहले पिता की हरकतों के कारण,
"सन 2009-2010 उम्र 20-21 साल [शहर-स्पोर्ट्स बाइक]"
स्पोर्ट्स बाइक बेचीं थी, अब वापस से अपने लिए,
दूसरी स्पोर्ट्स बाइक लोन पे लाता है

घर पे बहन भांजो के साथ खुश रहता है
कुछ पुराने कंप्यूटर, गेमिंग के लिए लाता है
भांजे जब भी आते है तो, पूरा समय देता है
सब छोड़ के उनके साथ, गेम खेलता है
घर की स्थिति की, भनक भी नहीं लगने देता है

आने वाले कुछ वर्षों में,
काम में अच्छे से आगे बढ़ता है
आगे परिवार बढ़ाने की,
जिम्मेदारी के लिए तैयार होता है
पैसे कमाने लग जाता है,
पिता को वापस देना शुरू करता है |

- रचित एक समय पर पिता को किस्तें देना शुरू करता है, और अलग से किराये पर भी रह रहा होता है | उसी समय पहली प्रेगनेंसी में उसको घर का काम देखना होता है और किस्ते नहीं दे पता, उस पर पिता बहुत ही घटिया बर्ताव करता है जैसा की वो है, "जब किस्ते शुरू करी तब कहा था क्या की बिच में दो महीने बंद रहेगी?" पिता को इतना तो पता है की दो महीने से रचित काम नहीं कर रहा, अकेले ही रचना को संभाल रहा है, हॉस्पिटल के खर्चे भी खुद ही उठा रहा है, घर के खर्चे भी और किराया भी, लेकिन पिता तो सिर्फ अपनी किस्ते मांग रहा हैं, रचित के पास पैसे नहीं होते, लेकिन फिर से, अपनी दूसरी स्पोर्ट्स बाइक को वो बेचता है, पिता को किस्ते देता है |

2018 पिता से बात 02

2014 में पहली बार पिता से बात होती है और परेशान नहीं करेगा आगे से इस बारे में, लेकिन ऐसा चलता रहता है 2018 तक भी, रचित फिर से पिता से साफ कहता है या तो परेशान करना बंद करदे या फिर वो उनसे रिश्ता तोड़ देगा | 2014 में पैसे लेने के बाद अभी तक रचित पिता को किस्तों और ब्याज के रूप में चार लाख रूपये वापस दे चूका होता है | पिछले चार वर्षों में जैसे परेशान करा है उसके आधार पर पिता से रचित सवाल करता है, की पैसे चाहिए या बेटा | पैसे चाहिए तो सारे चूका देगा किस्तें तो चल ही रही है | बेटा चाहिए तो अभी भी वक़्त है परेशान करना बंद करना होगा और उसके ऊपर पिता के अलावा भी कुछ कर्जा है, वो भी पिता को चुकाने होंगे | क्यूंकि पिता ने उस घर में रहने दिया नहीं ना ही अच्छे से काम करने दिया ना पैसे कमाने दिए, और सारे परिवार को दूर करते जा रहा है, साथ में रिश्तेदारों को ससुराल में हर जगह शिकायते करता रहता है, कहीं भी शांति नहीं और ना ही प्रेगनेंसी में मिस्कैरिज में किसी तरह का भावनात्मक सहारा | उसको सिर्फ पैसों से मतलब है इसीलिए पैसों की ही बात कर सकते हैं | और अगर ऐसा नहीं करता है पिता आगे से, तो रचित का उससे कोई रिश्ता नहीं, ना ही रचित का कोई फर्ज बचता है, रचित पैसे दे देगा सारे, और पिता की सम्पति में से कुछ नहीं लेगा जिंदगी में कभी | पिता मान जाता है और 4 लाख रूपये और देता है, जिससे रचित अपना सारा कर्जा चूका देता है |

2020 पिता से रिश्ता ख़तम

लेकिन दो साल बाद 2020 भी पिता ने रचित को परेशान करना बंद नहीं करा है, रचित ने पिता से रिश्ता ख़तम कर देता है | पिता की सम्पति भी रचित नहीं लेगा कभी भी | और 2021 में पिता की खरीदी हुई कार थी रचित के पास, उसने बेचकर 2 लाख (सारे) रूपये पिता को देता है |

31-07-2023, 25-08-2024

सन 2013-2024
[परिवार की मदद नहीं]
खोलें

कुछ कुछ बातें और व्यवहार ऐसे हुए है जिनको समझना मुश्किल है |


10 वर्ष का था तब से पैसे कमाने में लगाया हुआ था, 20 का हुआ तब अपने तरीके से कमाने में लगना चाहा और कामयाब हुआ, लेकिन तब से पिता के लिए बुरा बन गया, और उसके कहने पर एक एक करके बाकी सभी परिवार के लिए भी बुरा हो गया, चाहे माँ हो, दोनों बहनें हो या उनके बच्चे | बस इतना सा रिश्ता था? पिता का काम नहीं करके अपना काम करना यह गलती थी? इसके अलावा रचित ने कुछ भी किसी से साथ बहुत बुरा किया हो तो बताये, और किसी एक ने भी कोई भी मदद की हो तो बताये | परिवार के नाम पर ढोंग से सब के सब |

अंतिम पड़ाव समाप्त

2013-2024