बाकी आधा इस पर निर्भर करता है कि जो मिला है, उस आधे दुःख में तुम डूबकर रोते रहो या उसी से कुछ सीख लेकर बाकी का आधा जीवन संवार लो।

बाकी आधा तुम्हारे हाथ में है। दुःखों को सामने रखकर रो सकते हो और रुक सकते हो, या फिर जो भी हुआ उसमें से कुछ उपयोगी निकालकर, खुद को संवार सकते हो और जिंदगी में आगे बढ़ सकते हो।

अब यहाँ से, तुम्हारे द्वारा लिए गए जीवन के निर्णय यह तय करेंगे कि बाकी की जिंदगी आबाद होगी या बर्बाद। हाँ, कारण तुम नहीं थे—बहुत कुछ दूसरों ने किया। लेकिन अब भी, अगर सही निर्णय लेकर हिम्मत और मजबूती से आगे बढ़ना सीख लो, तो जीवन की दिशा बदल सकती है। अगर दुःखों के हाथों में डूब जाओ, तो आगे की जिंदगी उसी में उलझी रह जाएगी।


रचित,
तुम्हें कभी ऐसी स्थिति में छोड़ दिया गया था जहाँ से तुम खुद खड्डे में गिर जाओ और फिर पिता आकर तुम्हें बचाएं, हीरो बन जाएं, और तुम्हें हमेशा के लिए एहसान तले दबाकर रखें—जैसा कि वह हमेशा करते रहे हैं।

लेकिन तुम संभलते रहे।

इसके बावजूद, उन्होंने तुम्हारे ऊपर तरह-तरह का भार और दबाव बनाए रखा। उन्होंने सारी मदद बंद कर दी, सारा अपनापन छीन लिया। अब भी अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े काम की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर है।

लेकिन अभी भी, अगर तुम खुद को संभाल पाओ, तो जिंदगी अलग होगी।

अगर तुम इन दुखों में डूब जाओ, तो जिंदगी भी अलग होगी, और यह दिखाया जाएगा कि तुम अपनी ही गलतियों में फंसे हो।

पिता ने वर्षों तक तुम्हारे बारे में समाज और परिवार में गलत धारणाएँ बनाई, जिन्हें लोग मानते रहे। इन सब से अलग होकर, तुमने अपनी पहचान को फिर से परिभाषित किया और अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी। पिता और परिवार के कुछ सदस्य तुम्हें सही नहीं समझ पाए, और इसी वजह से तुम्हें उनसे अलग होना पड़ा। बाकी सभी तुम्हें समझते हैं, और अब तुम्हारी जिंदगी नई दिशा में आगे बढ़ रही है।


दुःख कब समाप्त होता है? यह तभी समाप्त होता है जब आप उससे सीखना शुरू करते हैं और अपनी जिंदगी बेहतर बनाना शुरू करते हैं।