Glimpse of survival
उत्तरजीविता की झलक - 01
रचित,
बचपन से लेकर बड़े हुए तब तक तुम उनके लिए कमाते रहे, एक दिन भी आराम करे बिना, और जब से तुमने अपने लिए कुछ भी चाहा तब से अब तक एक एक करके सब दूर हो गए |
[ ना तुम्हे खेलने दिया कभी, ना ही तुम्हे कोई छुट्टी मिली दुकान से | स्कूल बंद करवा दी, पढाई छुड़वाने के लिए हमेशा कोशिश करते रहे हताश करते रहे पढ़ने को लेकर गुस्सा होते रहे | और सी एस की पढाई पूरी कर लेने के बाद भी तो तुम्हे वो काम करने ही नहीं दिया गया | हमेशा डांट पड़ती थी, तुम्हे उतना ही सिखने दिया जाता कुछ भी जितना काम करने के लिए जरुरी था, तुम्हे क्या अच्छा लगता था यह हमेशा दबाया गया | तुम्हे सारे रिश्तेदारों से दूर रखा गया, हर एक से, दादा नाना जियाजी तक से, उनसे मिलने नहीं दिया जाता और उनकी बुराइयाँ भी करते रहते हमेशा | और तुम्हे तब भी विश्वास था की सब ठीक हो जायेगा एक दिन | तुम ननिहाल जाते थे, रात में 5 बजे बस से, और सुबह 6 बजे वापस बुला लेते हर बार,. हर एक बार |]
[ पुरे गांव ने देखा है, वहां हर दिन की बातें है जिसका तुम हिस्सा थे, वहां खड़े थे काम कर रहे थे | तुम्हारे सारे हर एक रिश्तेदार ने तुम्हारा बचपन देखा है और यह भी की तुम कभी नहीं आये उनके घर पर | ]
सब दूर हो गए उसके सबके अपने अपने कारण है ऐसा मानने के, और तुम्हारे भी अपने कारण है, अगर एक जैसे होते तो बात बन जाती, लेकिन अलग अलग है, कोई बैठ कर अगर बात करें तो शायद बात बन जाए, लेकिन तुमने इसकी भी कोशिश वर्षों तक करी, साफ जाहिर है की कोई चाहता ही नहीं सुलह हो |
कोशिशों में तुमने बहुत ज्यादा ही कुछ किया, करते रहे, अपना समझ कर लेकिन उसका भी मजाक ही बना|
तुम्हे शहर भी इसी शर्त से भेजा गया की तुम वहां भी काम करोगे पैसे कमाओगे, दुकान से भी ज्यादा, कंप्यूटर तुम्हारे साथ भेजा और दिनभर तुम ऑफिस का काम करते फॉर्म भरते और साथ ही कोचिंग करते | कुछ महीने शहर बाकी महीने फिर से दुकान पढाई के तीन साल ऐसे ही निकले, यहाँ भी एक मिनट की तुम्हे छुट्टी नहीं थी, हर दिन हर हल पिता से फ़ोन पर बात होती | नए लोगो के बीच थे लेकिन मिलने बात करने का समय नहीं था | परीक्षा के दिन भी पिता तुम्हे डाँटते ऑफिस भेजते |
इन सब के बिच तुम्हे नई बाइक भी मिलती है, स्पोर्ट्स बाइक, तुम्हे इससे ख़ुशी होती है लेकिन थोड़े समय बाद तुम्हारे पास स्कूटी होती है बाइक तो पिता चला रहा होता है, और नीच हरकतें पिता की उस पर भी वो लड़की घुमा रहा होता है | इतना काफी नहीं था क्या, लेकिन उस लड़की को तो पिता अपनी बहु बनाने के बहाने उसके घर वालों से करता है लड़की भी उसी में शामिल लगती है, तब भी तुम्हे इतनी हिम्मत और समझ थी रचित की तुम्हे बहु बनाने वाली बात पता चलते ही उसी दिन इसका परमानेंट इलाज करा, उसके बाद ना लड़की बैठी बाइक पर ना दिखी वापस | तुम्हे वही हिम्मत हमेशा रखनी है भूलना नहीं है | वक़्त चाहे कितना भी बदल जाये रचित ऐसी सोच रखने वाले पिता पर भरोसा मत करना कभी भी | और सारे परिवार पर भी नहीं जो इस बात को गंभीरता से नहीं लेते और कहने पर भी अनदेखा कर लेते है |
तुम्हारे पिता का औरतों को लेकर जो व्यवहार रहा उसने तुम्हे हमेशा परशान किया है बचपन में, और समय के साथ अब यह समझ भी आया है की समाज में उसकी इज्जत बहुत गिरी हुई है इस मामले में |
तुमने पिता के घर में रहते हुए, अपने बचपन में कई बार मरने के बारे में भी सोचा, और लगातार ऐसे विचार आते रहे पिछले दो तीन वर्षों तक भी |
और पैसे सम्पति तुम इसीलिए भी नहीं लेना चाहते क्यूंकि तुम्हे लगाव हे ही नहीं, पैसे होने का कोई तुम्हे फायदा महसूस ही नहीं हुआ, तुम तो वहां काम कर रहे थे, और रिश्तो के नाम पर तुमसे काम करवाया जाता, आज तुम उनसे दूर होकर नए रिश्ते महसूस कर रहे हो, और काम भी अपना कर रहे हो, आज तुम आजादी महसूस कर रहे हो इसीलिए तुम बहुत ही मजबूती से यह कह पा रहे हो की तुम्हे सम्पति नहीं चाहिए उनकी, और पिता ने भी सम्पति का हर दिन सुनाया है, उसके हिसाब से उसने पैसों से तुम्हे ख़रीदा हुआ है, और तुम्हारे हिसाब से तुम वस्तु नहीं जो खरीदी जा सके, इसीलिए पैसे सम्पति लेकर अपने आप को बेचना नहीं चाहते |
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