जितना लंबा दुःख, उतना लंबा मौन!



जब संघर्ष दुःख में बदल जाए, यानी कि एक लंबा संघर्ष जब सफल नहीं होता, तो वहाँ सिर्फ दुःख ही रहता है। जब मन और ईमानदारी से की गई सारी कोशिशें विफल हो जाएं और दूसरों की मदद से की गई कोशिशें भी असफल हो जाएं | जब समय बहुत अधिक बीत जाए, यानी कि जब आपकी जिंदगी में कुछ या कई महत्वपूर्ण पड़ाव निकल जाएं लेकिन फिर भी संघर्ष और दुःख वैसा ही रहे | जब मन-मस्तिष्क में यह सहन करने जैसा न रहे, यानी कि जब आपकी आज की जरूरतें और जिम्मेदारियां आप पूरी नहीं कर पा रहे हों | तब यह समझ लेना चाहिए कि सुखद समाधान कुछ होता तो यहाँ तक हो जाता।



तब इसका एक ही समाधान बचता है, और वह है संपूर्ण मौन।



संपूर्ण मौन उन सभी के साथ जिनसे संबंधित संघर्ष रहा, और साथ ही साथ संपूर्ण मौन इस बारे में किसी भी चर्चा से, किसी के भी साथ, यहाँ तक कि स्वयं के साथ भी। सबसे महत्वपूर्ण है स्वयं के अंदर ही संघर्ष के बारे में मौन रहना।

मौन इन सब पर हमेशा के लिए, या कम से कम उतने समय के लिए, जितने समय संघर्ष और दुःख रहे।

ताकि इन दुखों से बाहर निकला जा सके और मन-मस्तिष्क से यह सब हट जाए, जिससे आज की जिंदगी की जरूरतें और जिम्मेदारियां पूरी की जा सकें।