Where everything began - Rachit's childhood | जहाँ से सब कुछ शुरू हुआ - रचित का बचपन
सन 1999 - उम्र 10 साल [स्कूल]
कक्षा 4 के एक विद्यार्थी को गुरुजन, "विद्या का बस्ता" बुलाते थे
मिलता है उसको कंप्यूटर उस जमाने में, जब मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे
सिखाके कंप्यूटर उसका पिता, काम उससे करवाता है
आगे बढ़ते देख कामकाज में, स्कूल उसकी बदलवाता है
डाल के सरकारी स्कूल में, गृहकार्य कम करवाता है
छुटियो की शिकायत मिटाता है, काम करने का वक्त बढ़ाता है
आगे बढ़ते देख कामकाज में, घर पर खेलना भी बंद हो जाता है
दिनचर्या में उसकी बस स्कूल व दुकान, खेल की कोई जगह नहीं
साल एक ही हुआ अभी तो, बचपन वाली बात कोई रही नहीं
11 साल का ही तो था अभी, काम करने की जरूरत क्या पड़ गई
ऐसा नहीं कि पिता को पढाई की समझ नहीं, ना ही पैसों की कोई कमी
होती है कार बड़ा सा घर, और टेलीफोन उस जमाने में भी
सन 2001 - उम्र 12 साल [बचपन]
खेलना तो बंद हुआ ही था, ननिहाल कभी जाने दिया नहीं
खुश होते बच्चे हर रविवर या हो त्योहार, इस बच्चे का तो वो सुख भी बचा नहीं
आगे बढ़ा फिर भी वो, डांट के आगे कुछ चला नही
थप्पड़ भी पड़ी थी एक बार, क्योंकि हिसाब ठीक से करा नहीं
सन 2003 - उम्र 14 साल [खेल व दोस्त]
आंठवी पार होते हि, स्कूल हमेशा के लिए छुड़वा दीआगे बढ़ते देख कामकाज में, दुकाने दो बनवा दी
बुलाए नए शिक्षक कंप्यूटर के, बच्चे को और सीखाना था
जितनी जरूरत है पिता के काम में, उतना ही विशेषज्ञ बनाना था
देख के बच्चे का उत्साह, कोशिश करी बेहतर सिखाने की
थोड़ा ज्यादा सिखा दिया, इसीलिये दोनो को वहा से निकल जाना था
तारीफें थी हर जगह, उमर से ज्यादा मिलती थी इज्जत
चाहे आस पड़ोस और परिवार रिस्तेदार, सब जानते और मानते थे
लागत बस इतनी सी थी, नहीं बचपन वो जी पाया
नहीं उसके दोस्त बने, नहीं ननिहाल जा पाया
नहीं वो कभी खेल पाया, नहीं रविवार त्योहार मना पाया
जिंदगी में उसके सिर्फ, दुकान और डांट बची थी
बस कुछ घंटे थे स्कूल के, वो जन्नत भी अब छूट गयी थी
दुकाने अब हो गयी बड़ी, बिज़नेस बढ़ गया था
सुबह से शाम दुकान, खाना भी टिफिन में होने लग गया था
अब आंठवी का बच्चा, दुकान सँभालने लग गया था