कहानी का मूल उद्देश्य
परिवार में बैड-टच (बुरे स्पर्श) की गंभीरता को समझाना है, किस तरह से यह बुराई पीढ़ियों तक असर करती है।

पाठकों के लिए संदेश

गजेंद्र देवड़ा द्वारा लिखित

छोटे बच्चों को, अपने बच्चों को बैड-टच (बुरा स्पर्श) और गुड-टच के बारे में बताएं|

कैसे बताएं?

बच्चों को शरीर के अंगो के बारे में बताएं, फिर उनको समझाएं कि अगर कोई व्यक्ति आपके प्राइवेट पार्ट्स को गलत तरीके से छूने की कोशिश करें तो, ये बुरा स्पर्श (बैड टच) होता है।

यूट्यूब पे बहुत अच्छे वीडियो है इस बारे में, वहा से सीखे।

अपने घर में, अपने हम-उम्र या दोस्त से इस बारे में बात करें, उनसे पूछे क्या कभी उनके साथ किसी अपने के द्वारा बुरा स्पर्श किया गया है?
उनका अनुभव साझा करें। इस बारे में खुलकर बात करे। इससे आप उनके मन का भार हल्का कर सकेंगे साथ ही खुद का और बच्चों का ध्यान भी रखेंगे, और ऐसे लोगो से दूर रहेंगे|

और जो इससे पीड़ित है उनके लिए कोशिश है यह कहानी जब पूरी हो जाए तब शायद किसी तरह से उपयोगी साबित हो।

पहली मदद तो यही है कि "बुरा स्पर्श गलत है|", चाहे करने वाला किसी का पिता ही क्यों न हो।

इसके अलावा उम्मीद है कि यह कहानी,
- शायद उनको उस अनुभव से आराम दिलाने में मदद करें
- या फिर शायद एक जगह मिले जहां वो अपना अनुभव सांझा कर सके
- हो सका तो एक जगह जहां इस बारे में खुल के बात की जा सके चाहे अपनी पहचान के साथ या बिना पहचान के। ताकी बाकी पढने वालो को प्रेरणा मिले

इस कहानी को पूरा होने के बाद हर एक भाषा (दुनिया की सभी भाषाओं में) में भी लिखा जाने की कोशिश रहेगी।

अगर आप एक मां होते हुए इस बारे में बात नहीं कर पा रही, तो आप अपनी बेटी को कमजोर कर रही है, चाहे आपकी या बेटी की उम्र कुछ भी हो। इतना तो आप अपनी बेटी के लिए कर ही सकती है?

कहानी की प्रस्तावना, खाका

गजेंद्र देवड़ा द्वारा लिखित

कहानी का मूल उद्देश्य बैड-टच (बुरा स्पर्श) की गंभीरता को समझाना है, किस तरह से यह बुराई पीढ़ियों तक असर करती है।

अन्य उद्देश्य: अपनी समस्याओं को हल करने के लिए अपने सपनों का उपयोग और अंततः उन्हें पूरा कैसे करें, इस बारे में अनुभव साझा करना| इस उम्मीद के साथ की किसी तरह उपयोगी साबित हो |

यह कहानी जीत की है, रोने धोने की नहीं| दो मान्यताओ (विश्वास,धारणा) को मजूबती (दृढ़ता) से माना गया है, पहली "संघर्ष खतम होता ही है", और दुसरी "फिर से सामान्य जिंदगी जीना संभव है", संघर्ष पूरा करने के बाद ज्यादा मुश्किल है सामान्य जीवन में ढलना, जिसकी चर्चा कम होती है |

पहला अध्याय (Chapter 1): में पूर्ण रूप से रचित की जिंदगी का वर्णन है जो की इस किताब की पृष्ठभूमि (आधार) है | इसका उपयोग पूरी किताब में जगह जगह संदर्भ/उदाहरण के तौर पे किया जाएगा | मूलभूत रूप से, अध्याय 2 से 10 उपयोगी है |

"विचार: किसी के साथ कितनी बुरी/गलत घटनाएं घटती हैं, इस आधार पर जीवन में किसी भी लत को अपनाने और/या गंभीर गलतियां करने से बचना चाहिए। हालाँकि अधिकांश काल्पनिक कार्य (फिल्म, धारावाहिक, गीत, श्रृंखला आदि) आज कल इसके विपरीत चल रहे हैं|"

रचित का जीवन - संक्षिप्त

यह कहानी घर में ही बुरे-स्पर्श की समस्याओं से लड़ते हुए और 'जीतते हुए' रचित की है| उसकी बाईस वर्षों की 'संघर्ष' भरी जिंदगी की है| 1999-2013 | 2013-2022

'जीतते हुए' और 'संघर्ष' दोनों साथ कैसे? हारता नहीं, टूटता नहीं, रुकता नहीं, इसका मतलब जीतता हमेशा है, लेकिन पहले बारह साल पिता का इंतजार करता है, और अगले दस साल बाकी घरवालों का, की सब उसे समझे/मदद करें| इसीलिए यह वक़्त संघर्ष बन जाता है|
पिता को उसकी सम्पति सहित वो छोड़ चुका है, और घर के सदस्यों में से कोई भी पिता के खिलाफ खड़ा नहीं है, रचित अकेला है, कुछ का रचित की आवाज उठाना ही सही नहीं लग रहा, उनके हिसाब से रचित को अभी भी चुप रहना चाहिए| अब आवाज उठाने के बाद शायद रचित कई रिश्ते खोने वाला है|
'बाईस साल का संघर्ष', क्या यह बहुत ज्यादा नहीं है?
यह आप खुद तय करें, रचित के जीवन को कविता स्वरुप में वर्णित किया हुआ है, अलग अलग भागों में बहुत ही सिमित शब्दो में आसानी से समझने लायक|

रचित की जिंदगी का वर्णन यहाँ क्लिक करके देखें

सारे भाग: 1999-2022 > [स्कूल], [बचपन], [खेल व दोस्त], [अपनापन], [पढ़ाई], [घर], [दुकान], [आत्मविश्वास व साहस], [संघर्ष], [शहर-स्पोर्ट्स बाइक], [परिवार की परिभाषा], [ख़ुदकुशी तीन साल बाद], [कंपनी सेक्रेटरी-एग्जीक्यूटिव], [कंपनी सेक्रेटरी-प्रोफ़ेशनल], [पिता शब्द की मर्यादा], [मानसिक परिवर्तन], [समाधान: समापन व निष्कर्ष]

Poem of Rachit - Detailed by Gajendra D | रचित की कविता - विस्तृत

Gajendra D

सन 1999 - उम्र 10 साल [स्कूल]

कक्षा 4 के एक विद्यार्थी को गुरुजन, "विद्या का बस्ता" बुलाते थे 
मिलता है उसको कंप्यूटर उस जमाने में, जब मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे 

सिखाके कंप्यूटर उसका पिता, काम उससे करवाता है 
आगे बढ़ते देख कामकाज में, स्कूल उसकी बदलवाता है 

डाल के सरकारी स्कूल में, गृहकार्य कम करवाता है 
छुटियो की शिकायत मिटाता है, काम करने का वक्त बढ़ाता है 
आगे बढ़ते देख कामकाज में, घर पर खेलना भी बंद हो जाता है 

दिनचर्या में उसकी बस स्कूल व दुकान, खेल की कोई जगह नहीं 
साल एक ही हुआ अभी तो, बचपन वाली बात कोई रही नहीं 

11 साल का ही तो था अभी, काम करने की जरूरत क्या पड़ गई 
ऐसा नहीं कि पिता को पढाई की समझ नहीं, ना ही पैसों की कोई कमी 
होती है कार बड़ा सा घर, और टेलीफोन उस जमाने में भी 

 

सन 2001 - उम्र 12 साल [बचपन]

खेलना तो बंद हुआ ही था, ननिहाल कभी जाने दिया नहीं
खुश होते बच्चे हर रविवर या हो त्योहार, इस बच्चे का तो वो सुख भी बचा नहीं

आगे बढ़ा फिर भी वो, डांट के आगे कुछ चला नही
थप्पड़ भी पड़ी थी एक बार, क्योंकि हिसाब ठीक से करा नहीं

 

सन 2003 - उम्र 14 साल [खेल व दोस्त]

आंठवी पार होते हि, स्कूल हमेशा के लिए छुड़वा दी
आगे बढ़ते देख कामकाज में, दुकाने दो बनवा दी

बुलाए नए शिक्षक कंप्यूटर के, बच्चे को और सीखाना था
जितनी जरूरत है पिता के काम में, उतना ही विशेषज्ञ बनाना था
देख के बच्चे का उत्साह, कोशिश करी बेहतर सिखाने की
थोड़ा ज्यादा सिखा दिया, इसीलिये दोनो को वहा से निकल जाना था

तारीफें थी हर जगह, उमर से ज्यादा मिलती थी इज्जत
चाहे आस पड़ोस और परिवार रिस्तेदार, सब जानते और मानते थे

लागत बस इतनी सी थी, नहीं बचपन वो जी पाया
नहीं उसके दोस्त बने, नहीं ननिहाल जा पाया
नहीं वो कभी खेल पाया, नहीं रविवार त्योहार मना पाया

जिंदगी में उसके सिर्फ, दुकान और डांट बची थी
बस कुछ घंटे थे स्कूल के, वो जन्नत भी अब छूट गयी थी

दुकाने अब हो गयी बड़ी, बिज़नेस बढ़ गया था
सुबह से शाम दुकान, खाना भी टिफिन में होने लग गया था
अब आंठवी का बच्चा, दुकान सँभालने लग गया था