संघर्ष कैसे ख़त्म करें इसके बारे में एक कहानी

यह एक ऐसे लड़के की कहानी है जो 10 वर्ष की उम्र से ही अपने पिता के व्यवहार के कारण अनेक मानसिक जटिलताओं का सामना करता है और यह सब समझ में आना और कम होना तब शुरू होता है जब वह 27 वर्ष की उम्र में घर छोड़ देता है और अंततः अपने पिता से संबंध तोड़ लेता है। इससे उसे मदद तो मिलती है, लेकिन ऐसा करने पर उसे पूरा परिवार भी पीछे छोड़ना पड़ता है। वर्षों बाद, वह इन जटिलताओं को सुलझा पाता है और सामान्य जीवन जीने की ओर बढ़ता है।

रचित की कहानी

कहानी में 10 चैप्टर हैं, जिनमें से एक में रचित की जिंदगी का गहराई से विवरण दिया गया है। बाकी चैप्टरों में यह समझने की कोशिश की गई है कि संघर्ष से बाहर कैसे निकला जा सकता है और इनसे उत्पन्न तनाव और मानसिक उत्पीड़न को कैसे पार किया जा सकता है। अंत में, चैप्टर 10 में यह गहराई से चर्चा की गई है कि 'जीवन को पुनः कैसे शुरू करें।'

इसका उपयोग कैसे करें?

कहानी में रचित का संघर्षपूर्ण जीवन दर्शाया गया है और यह कि वह मानसिक जटिलताओं, अवसाद के दौर, सवालों और अस्थिर भावनाओं से कैसे उबरता है।

यह ज़रूरी नहीं है कि हर व्यक्ति एक जैसी समस्याओं का सामना करे। समस्याएँ भिन्न प्रकार की हो सकती हैं और उनकी आवृत्ति (frequency) कम या ज़्यादा हो सकती है। अपने संघर्ष को रचित के संघर्ष से जोड़कर और इस पुस्तक में दिए गए सुझावों को अपनाकर, आप अपने संघर्ष को हल्का करने का तरीका या इसे देखने का एक नया दृष्टिकोण प्राप्त कर सकते हैं। यह प्रक्रिया आपके लिए प्रेरणा और व्यावहारिक समाधान का स्रोत बन सकती है।

कुछ लेख आपकी बहुत मदद करेंगे और कुछ कम उपयोगी हो सकते हैं। समस्याएँ जितनी हल्की होंगी, बाद के लेख उतने ही उपयोगी होंगे। इसलिए आप उन्हें चैप्टर या शीर्षक के अनुसार छोड़ सकते हैं और जो उपयोगी लगे, उसे पढ़ सकते हैं।

रचित के लिए निष्कर्ष

"


अब आगे क्या?
अब क्या, अब आएगी बाढ़ उन सभी बातों की जो पिछले दस साल में रह गईं।
अब खुलेंगी आँखें और एहसास होगा कि यह क्या हो गया। इतना सारा समय कहाँ गया? क्या से क्या कर सकते थे। अब मचेगी भागदौड़, एक साथ सारी बातें सामने आएंगी और कुछ समझ नहीं आएगा कि कहाँ से शुरू करें और करे तो क्या करें, क्योंकि हर जगह कमियाँ हैं। परिवार को जिंदगी से निकालकर देखो, तो उसमें जो नहीं होता है, वही सारी कमियाँ हैं।

लेकिन घबराना नहीं, एक खुशी है कुछ सही से शुरू करने की और बाकी सारे गम, जो सब चीजों के सामने आ जाने से हैं। समझ नहीं आएगा कि खुशी पर ध्यान देना है या बाकी कमियों पर । फिर भी घबराना इसलिए नहीं क्योंकि तुम्हारे अंदर समझ है जो पहले से बेहतर है। तुमने जितना वक्त कठिनाइयों में बिताया है, उतना ही खुद को संवारा भी है। तुम्हें खुद ही अपनी काबिलियत को ढूँढना है और उसी पर ध्यान केंद्रित करना है। कुछ नहीं गया है; गया वही है जो तुम्हारे लिए मददगार नहीं था, चाहे पूरा परिवार ही क्यों न हो। और इतना वक्त लगाने का यह फायदा है कि तुम्हें जिंदगी में कभी भी अपने परिवार को छोड़ने का गम नहीं होगा। तुम अपने फैसले पर दुबारा डगमगाओगे नहीं, क्योंकि तुमने दस वर्ष परिवार को और बीस वर्ष पिता को दिए हैं, जो बहुत बड़ी बात है, बहुत लम्बा समय है । और इसी तरह के फैसले जिंदगी में कुछ बड़ा करने की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं।

"