यह सिर्फ एक घटना नहीं है, ना ही दो, चार या पांच भी नहीं हैं | यह एक लगातार प्रक्रिया रही है, पिता द्वारा रचित को दबाने की परेशानी करते रहने की, कि कब वह पूरी तरह बिखर जाए। ऐसी अचंभित कर देने वाली घटनाएं बार-बार होती रहीं, जिन्हें एक पिता अपने बेटे के साथ कभी नहीं कर सकता। पिता एक बार भी नहीं रुके और यह नहीं सोचा कि अब बस बहुत हुआ। उनके अहंकार ने उन्हें अंधा कर दिया। उन्होंने अपने बेटे को जिंदगी से खो दिया। बेटा पिता को छोड़कर चला गया और उसने संपत्ति भी त्याग दी। इसके बावजूद, पिता ने अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं किया।
यहां कुछ घटनाओं का चित्रण है शब्दों के माध्यम से, कम से कम रखने की कोशिश की गई, शब्द कम हैं, लेकिन उनके अर्थ को गहराई से समझने की जरूरत है। प्रत्येक पेरेग्राफ में रचित के जीवन की एक विशेष स्थिति और उसके अनुभवों का विवरण है। पिता ने बहुत सारे भावनात्मक घाव दिए है और उन्हें लगातार वर्षों तक हरा रखा गया है । रचित को यह सब सहन करते हुए खुदको वहां से निकालना पड़ा।
कोई अपने पिता सहित उसकी पूरी सम्पति और पूरे परिवार को ही क्यों छोड़ेगा?
"आपने मेरे जीवन को अपनी मर्जी से, पूरी ताकत से, पूरे आनंद के साथ बर्बाद किया है, पापा। इसलिए मैं आपको और आपकी पूरी संपत्ति को छोड़ रहा हूँ।"
"यह निर्णय मेरे लिए आसान नहीं है, लेकिन यही मेरे जीवन का एकमात्र रास्ता है। आपके कारण मेरी खुशी, मेरी पहचान, और मेरा हर सपना टूट गया। आज मैं खुद को बचाने के लिए यह कदम उठा रहा हूँ, ताकि मैं अपनी जिंदगी को फिर से बना सकूँ।"
"पापा आपके द्वारा दिए गए भावनात्मक घाव इतने गहरे हैं कि अब उनके कारण आपके साथ जीना नामुमकिन हो गया है। आपने बचपन से ही एक के बाद एक घाव दिए, कभी उन्हें भरने का मौका ही नहीं दिया। आपकी मंशा हमेशा मुझे तोड़ने, मेरी सोच और बुद्धिमत्ता को गुलाम बनाने, और मेरे पूरे जीवन का इस्तेमाल केवल अपने स्वार्थ के लिए करने की रही। यह सब समझने में मुझे 10 साल लगे और इसे मानने में भी इतना ही समय। आपके द्वारा दिए गए पहले घाव के 20 वर्ष बाद अब मैं आपको छोड़ रहा हूँ। इतना वक्त काफी था आपके संभलने और रुकने के लिए। इन घावों ने मुझे अंदर से इतना खाली कर दिया है कि अब मैं खुद को बचाने के लिए आपके प्रभाव से दूर जाना चाहता हूँ।"
30 वर्ष की आयु में, रचित ने अपनी पूरी जिंदगी के आधार पर एक साहसिक कदम उठाया—पिता और उनकी संपत्ति को छोड़ने का फैसला। इससे 4-5 वर्ष पहले ही वह पिता का घर छोड़कर किराए पर रहने के लिए मजबूर हो गया था। इन 4-5 वर्षों में हुई घटनाओं ने न केवल यह साबित किया कि घर से अलग होने का उसका कारण सही था, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि कोई सुधार संभव नहीं था। यह स्थिति दर्शाती है कि माता-पिता का घर छोड़ने के बाद उनके व्यवहार ने रचित के पहले के निर्णयों को और मजबूत कर दिया।
पिता के व्यवहार और उनके कारण परिवार के बदले रवैये ने उसे इस निर्णय पर पहुंचाया कि पिता से नाता तोड़ना ही उसकी भलाई के लिए आवश्यक है। अपने पिता और उनकी संपत्ति को छोड़ने का यह निर्णय रचित के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह आसान नहीं था, लेकिन वही बदलाव था जिसकी उसे सबसे अधिक आवश्यकता थी। धीरे-धीरे, उसने अपने जीवन को फिर से व्यवस्थित करना शुरू किया। अपनी मेहनत के बल पर उसने सफलता हासिल की और उसका सामाजिक दायरा भी बढ़ने लगा। रचित ने अपनी पहचान बनानी शुरू की और उसका जीवन बेहतर होने लगा।
हालांकि, इस निर्णय का एक और प्रभाव देखने को मिला। जैसे ही रचित ने अपने पिता को छोड़ा, परिवार के अन्य सदस्य भी उससे अलग-थलग होने लगे। वे रचित से दूर होते गए। अगले 6-7 वर्षों तक रचित ने इस दूरी को कम करने की पूरी कोशिश की। उसने हर एक से व्यक्तिगत बातचीत के माध्यम से अपनी स्थिति स्पष्ट करने और अपने फैसले की वजह समझाने का प्रयास किया। जब यह प्रयास विफल रहा, तो उसने समाज और रिश्तेदारों की मदद ली, ताकि वे परिवार के बीच की दूरी खत्म करने में सहयोग कर सकें।
लेकिन परिवार के सदस्य बातचीत में रिश्तेदारों को शामिल करने से इनकार करने लगे, जिससे रचित की कोशिशें लगातार असफल होती रहीं। इस उदासीनता ने रचित को यह समझने पर मजबूर कर दिया कि इन रिश्तों को बचाना अब उसके अकेले के बस की बात नहीं है। पिता द्वारा दिए गए गहरे भावनात्मक घाव अब भी ताजा थे, और परिवार की ओर से यह सब और सहन करना रचित के लिए नामुमकिन हो गया था। अंततः, उसने मानसिक शांति और भावनात्मक स्थिरता के लिए परिवार से पूरी तरह अलग होने का कठिन लेकिन आवश्यक फैसला किया।
यह सब कब से शुरू हुआ
"पापा, आपने मुझसे मेरा परिवार छीना, मेरा बचपन छीना। जो बचपन आपने दिया, उसे कोई भी जीना नहीं चाहेगा—यहां तक कि आप भी नहीं। आपने मेरे स्कूल का आधा और मेरा कॉलेज का पूरा समय मुझसे छीन लिया। मेरे दोस्तों के साथ बिताने वाला हर एक पल भी आप ले गए। दादा, नाना, मामा, चाचा जैसे रिश्तों को महसूस करने का हर अनुभव भी आपने मुझसे छीन लिया। आपने तो बचपन में मेरे सगे और कज़िन भाई-बहनों के साथ बिताने वाला समय पूरी तरह शून्य ही कर दिया। यही सबसे बेहतर समय और खुशियाँ होती है। आप मिलने ही नहीं देते थे किसी से भी | आपने मेरी जिंदगी से खेलने का सारा समय छीन लिया।"
"आपने मुझे हमेशा अपने बनाए नियमों में कैद करके रखा। आपने मुझे रिश्तेदारों से दूर किया, यहां तक कि उन लोगों की बुराई की जो शायद मेरी मदद कर सकते थे। आपने मुझे ऐसा महसूस कराया कि मैं अकेला हूं, जैसे मेरी दुनिया केवल आपके इर्द-गिर्द सीमित हो। आपने मेरे हर कदम को नियंत्रित किया, मेरे दोस्तों, परिवार और यहां तक कि मेरी सोच तक को।"
"आपकी बातों और कठोर शब्दों ने मुझे हर समय अपराधबोध में रखा। जब भी मैंने अपनी राय रखनी चाही, आपने चिल्लाकर और तर्क को घुमाकर मुझे चुप करा दिया। यह सिर्फ शब्द नहीं थे, यह एक ऐसी दीवार थी जिसने मुझे हर तरफ से घेर लिया। आप मेरे भावनात्मक जेलर बन गए थे।"
"अगर आपको यह नहीं लगता, तो अपनी जिंदगी में झांक कर देखिए। आपने जो किया, उसका मुझ पर क्या असर रहा। अगर आप इसे समझ कर पछतावा कर सकते हैं, तो जरूर करिए, क्योंकि पापा, न्याय अभी भी बाकी है। मैंने आपको अब तक गाली नहीं दी, ना आपका अपमान किया—ना आपके सामने, ना आपके पीछे। मैंने समाज का न्याय नहीं लिया, क्योंकि उसमें सिर्फ इतना था कि सब माफ कर दिया जाए। लेकिन इतने सारे अन्यायों के लिए माफी काफी नहीं है। मैंने कानून का न्याय भी नहीं लिया। न्याय मैंने भगवान पर छोड़ दिया है, और वह अभी होगा, इसी जन्म में।"
"अगर आपको ऐसा कुछ नहीं लगता, तो मैं बताता हूं क्यों। क्योंकि आप अहंकार में इतना डूबे हुए थे कि आपको कुछ पता नहीं चल रहा था। आपको दुकान पर कोई चाहिए था, और आप महीने में बीस दिन बाहर रह सकें। क्यूंकि आपको अपनी विलासताएं भोगने के लिए समय और आजादी चाहिए थी। और वह आपको जैसे-तैसे हासिल करना था। आपको कोई फर्क नहीं पड़ा की मुझपर क्या बीत रही हैं। आप अपनी डांटने और बातें बदल देने की निति में माहिर थे। आप अहंकारी थे और आप विलासता में डूबे थे और साथ में हनुमान जी के भक्त होने का ढोंग भी, उसका भी न्याय मैं अलग से मांगूगा। आपने अपने मकसद के लिए मेरी जिंदगी में जो चाहा मनमर्जी की।"
पिता की सफलता
"पापा, आप सफल हुए। आपकी रणनीति—'अगर रचित मेरा काम नहीं करेगा तो उसका भी नहीं होने दूंगा, बर्बाद कर दूंगा'—काम कर गई। आपने मेरी दो बड़ी सफलताएं और इतने वर्ष व्यर्थ कर दिए। एक (सी एस) की आपने ट्रेनिंग रोक कर उसे आगे नहीं बढ़ने दिया और दूसरी में आपने मुझे घर-परिवार से इतना अकेला कर दिया कि मुझे अपनी पत्नी की गर्भावस्था और फिर अपने बच्चों को खुद ही संभालना पड़ा। और मैं वर्षों तक काम पर ध्यान नहीं दे सका और अच्छे पैसे भी नहीं कमा सका। मेरे पास कुछ भी नहीं है—न अपना घर और न प्लॉट। मिली है तो बस आपसे आज़ादी, जो मेरे लिए जीने मरने जैसी है | यही मेरे लिए नया जीवन है, जो मेरे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। इसलिए आप सफल हुए, लेकिन आपने जो किया, उसका न्याय मैं भगवान से मांगूंगा।"
"आपने तो इतना तक कह दिया, अहंकार और गुस्से में, कि आप मेरे बच्चों को ही मुझसे अलग करके दिखाओगे । किसी के मुख से ऐसे शब्द नहीं निकलते अपने बच्चे के लिए। उस समय मेरे बच्चे हुए भी नहीं थे।"
"और यह बात सही थी, क्योंकि इसके बाद ही आपने सच में मेरे पूरे परिवार को मुझसे अलग कर दिया।"
"आप सफल रहे मेरे अपनों को दूर करने में, मुझसे माँ, बहने, भांजे सब छीन लिया, रहे तो सिर्फ मेरे बच्चे क्यूंकि मैंने उनको आपसे दूर ही रखा, , यह जानते हुए कि आप जो कहते हैं, वह करते हैं। मुझे इस पर पूरा यकीन है, और डर भी है, इसलिए, मैं हमेशा आपसे दूर ही रहूँगा। यकीन अब यह भी है की भले ही आप बुढ़ापे में आ जाएं, तो भी आपके पीछे एक पूरा परिवार है, बिल्कुल आपके ही नक्शे-कदम पर चलता हुआ। जो मेरे लिए बिल्कुल आपकी ही तरह एक साझा विचार रखता है और एक ही तरह का व्यवहार करता है।"
"मेरा कमजोर होना और मेरे बच्चो का कमजोर और बीमार होना आपके लिए सफलता का पर्याय बना, सभी के लिए। और मेरा "खुद्दारी से सब अकेले संभालना, पुरानी बातें स्पष्ट किये बिना घर नहीं आना", उसने तो सबको और गुस्सा दिला दिया। उस समय कौन था मेरे साथ? आप सब कब आते मदद करने? तब, जब हम में से कोई मर जाता? या तब, जब हम पिता की गुलामी स्वीकार कर लेते? क्योंकि बस यही बचा था। मुश्किलें और बीमारी का समय इतने वर्षों तक चला कि मरने के अलावा सारी बुराइयाँ बीत रही थी और आप सभी ने भी उसमें कोई कसर नहीं छोड़ी।"
"मैं बताता हूँ, आप क्या चाहते थे—या तो मेरे बच्चे मर जाएँ ताकि हम टूट जाएँ और आप हमें फिर से गुलाम बना लें, या हम मर जाएँ ताकि बच्चे आपको मिल जाएँ और वही सब दोहराओ जो मेरे साथ किया। और मेरे खिलाफ अपने शोषण की भूख को, अहंकार को पूरा करो। ऐसी बातें मैं इसलिए बोल पा रहा हूँ, क्योंकि एक ऐसा समय निकला था जब आपने हर तरफ से इतना सामाजिक दबाव बनाया और सबको इतना भ्रमित कर दिया कि हमें सबने छोड़ने की धमकी दे दी थी। पूर्णतया निष्काषित करने की समाज से रिश्तों से, तब यह मरना लगभग होते होते रह गया था।
तो, पापा, ऐसा है—मैं अपने बचपन से लेकर अब तक कई बार मौत को करीब से अपनाने को विवश हुआ हूँ। अब ये देखना है की इन सब दुःखों का एहसास आपको कब होगा, और कैसा होगा | जितने मेरे दुःख और विवशताएँ थी, उन सबका न्याय मैं भगवान से मांगूगा।"
घर छोड़ने के बाद पिता ने क्या किया
"मैं आपके घर से अलग हुआ, किराये पर रहने लगा, मैं अब भी चुप था किसी से कोई शिकायत नहीं की आपकी, और अपने आप में खुश था, दो पैसे बनाने लगा आपको उधार चुकाने लगा।"
"आपको यह फिक्र नहीं थी कि मैं घर से बाहर हूँ। आपको लगा कि मैं पैसे कमा रहा हूँ, किराया दे रहा हूँ, और आपका उधार भी चुका रहा हूँ, तो मुझसे और पैसे लिए जाएं और आपने तो मुझे ही अपना घर बेचने की कोशिश की? इसके अलावा, एक बार जब मैं दो किश्तें नहीं चुका पाया उधार की, क्योंकि मेरी पत्नी गर्भवती थी—जो सबको पता था—तब भी आपने जो कहा और जो व्यवहार किया, वह करने योग्य नहीं था।"
"जब हमें परिवार की सबसे अधिक जरूरत थी, पत्नी के गर्भवती होने के दौरान, तब भी आपने मां को हमारे पास नहीं रहने दिया। आपने तो माँ को हमारे साथ तब भी नहीं रहने दिया, जब हम आपके घर में ही थे। क्या आपने इतने सारे घर सबको अलग-अलग रखने के लिए ही बनाये थे? आपने मुझे माँ के पास बचपन में भी कभी नहीं रहने दिया—शायद ही कोई दिन ऐसा रहा हो, जो मैंने माँ के साथ पूरा बिताया हो। शादी के बाद भी कई बार कहा, लेकिन माँ हमारे पास नहीं रही। पत्नी के गर्भवती होने के दौरान भी, माँ के लिए मेरे बच्चे, जो पेट में थे, उनसे ज्यादा ज़रूरी थे आपका घर और आप। फिर माँ से लगाव कैसे बनता? आपने कभी भावनात्मक रिश्ता बनाने का मौका ही नहीं दिया।"
"मिसकैरेज हुआ, और फिर अगली बार गर्भावस्था के दौरान भी आपने माँ को साथ रखने की बात तो दूर, बहनों को ही अलग करना शुरू कर दिया। अब आपको पापा कहने में भी शर्म आती है। आप इंसान नहीं, बल्कि दैत्य हो। मैं भगवान से इन सभी दुखों का न्याय मांगता हूँ। मेरी स्थिति का आपको कोई फर्क नहीं पड़ा। आपको कोई फर्क नहीं पड़ा मेरी स्थिति का।"
"फिर भी आप कहाँ रुके पापा? एक तरफ हम अकेले बच्चों की परवरिश में लगे थे, कुछ नहीं पता था, और दूसरी तरफ आपने सबको भ्रमित और दूर कर रखा था। मुझे मदद मिलना तो दूर, मुझे अपनी स्थिति का जवाब सबको देना पड़ रहा था—मेरी बहनों को, मेरे भांजों को, और सभी रिश्तेदारों को। क्या गज़ब का समय चुना आपने मुझे तोड़ने के लिए—छोटे बच्चे है, पास में पैसे नहीं, माँ नहीं साथ में, और ससुराल में भी आपने शिकायतें कर रखी। इन सब का न्याय होगा। इन्हीं कारणों से मैंने न्याय भगवान पर छोड़ा। समाज सिर्फ 'माफी' शब्द दे रहा था मुझे, इतने वर्षों की प्रताड़ना के बदले वो मुझे स्वीकार नहीं था। इतने वर्षों के बदले दो शब्द मिलते आपके मुंह से, नहीं चाहिए थे। उसके बाद समाज मुझसे उम्मीद करता आप पर विश्वास करने की, यह मुमकिन नहीं था।"
"विश्वास आप पर? जब आपने शादी के दस दिन बाद पैसे देना बंद कर दिया, यह सोच कर की अब तो दो लोग है, खाने के लिए तो मेरा काम करेंगे ही, और सी एस की ट्रेनिंग नहीं कर पाएंगे। आधे आप सफल हुए ट्रेनिंग नहीं हुई, लेकिन खाने के लिए हमने हार नहीं मानी और अपना नया काम शुरू करा। हाँ, लेकिन आप जैसे पैसे वाले के बच्चों को शादी के बाद घूमने के बजाय अगले एक-डेढ़ साल तक खाने की चिंता में रहना पड़ा। यह आपकी सफलता का पर्याय था।"
"मैं पैसे कमाता, अपने छोटे बच्चों को संभालता, और किराए के घर में रह रहा था। माँ कभी भी साथ रहने नहीं आई। मैंने कितनी बार कहा कि साथ रहो, कुछ दिन तो रहो। वह आती भी तो सिर्फ एक-दो घंटे के लिए, और वह भी एक-दो महीने में। क्या बस इतना ही रिश्ता था? और बहनों का भी वही हाल था।"
"मैंने वर्षों तक सिर्फ एक बात के लिए मिन्नत की—हर छोटे और बड़े से— कि वे इतना कह दें और मान लें कि पापा ने मेरे साथ बहुत गलत किया है और मेरा उनसे दूर रहना जरूरी है। मैंने चाहा था कि वे मेरे इस निर्णय में मेरे साथ खड़े हों। लेकिन किसी ने ऐसा नहीं कहा। जब उनसे मदद नहीं मिली, तो मैंने बाकी रिश्तेदारों से अपने साथ हुए अन्याय का न्याय मांगने की कोशिश की। मैं अपनी स्थिति और अपने पिता द्वारा दी गई प्रताड़नाएं सबको बता रहा था, और यह परिवार को पसंद नहीं था। सबके सवाल मुझसे थे और सब मुझ पर गुस्सा थे।"
"मुझे तोड़ने के लिए पिता ने जो कुछ किया, वह सब परिवार को—"रचित को ठीक करने की प्रक्रिया" ही लगा, जैसे मैं कोई मशीन हूं। पिता ने जो कहा, परिवार ने उसे बिना सवाल किए स्वीकार कर लिया और उसी के अनुसार व्यवहार करने लगे। उन्होंने जो व्यवहार किया, एक दिन सबको समझ आएगा कि मेरी क्या स्थिति थी। मैं तो सबको चाहता था। थोड़ा सा, लेकिन अच्छा समय भी बिताया था साथ और सबको साथ लेकर चलता था। मैंने सच में उनका कुछ नहीं बिगाड़ा था। लेकिन जब मैंने अपनी भावनाओं, खुशियों, और ज़रूरतों के बारे में बात की, तो परिवार को यह असामान्य और अजीब लगा। इसे सुनना और समझना उनके लिए असहज था। वे सोचते—"रचित यह क्या कह रहा है? इसके लिए तो सब कुछ सही है।""
"ना बचपन का, ना जीवन में किसी पड़ाव में किसी भी अनुभव का, ना खुशी का, ना चाहत का, ना जरूरतों का—आपको किसी का भी आपको कोई लेना देना है ही नहीं। आप ही महान हो और मेरे भगवान हो, मैं आपका गुलाम हूं, और मेरी पत्नी भी मेरे बच्चे भी, आपको यह चाहिए था। इसी कारण से मैंने आपसे नाता तोड़ा। इतने वर्षों तक, आपके लिए वक़्त था सुधार का। मैं वर्षों तक चुप रहा, आपकी शिकायत नहीं की थी। पहले आपकी इज्जत करता था और फिर पिता होने के नाते चुप रहा। और आपके साथ रहना मुमकिन नहीं था, इसलिए अलग रहा, लेकिन फिर भी चुप ही रहा। फिर भी आपने स्वयं ही अपने पिता होने का जो सम्मान था वो भी खो दिया।"
"पापा आपने मुझसे परिवार छीना, ऐसा मुझे लगता था। लेकिन हकीकत यह थी की आपने मुझे कभी परिवार दिया ही नहीं, तो छीनोगे कैसे? और जो दिया ही नहीं, उसके छीनने का मुझे अब दुःख किस बात का? वक़्त ने मेरे लिए परिवार की परिभाषा ही अलग बना दी। यह आपकी सोच से इतनी बड़ी हो गई कि अब कुछ भी छीनना या किसी को बहकाना आपके बस में नहीं रहा। अब आप, माँ और बहनें सब अपने हिसाब से रहो, साथ रहो। मुझे आप सभी से कुछ नहीं चाहिए, संपत्ति भी नहीं। मुझे सारे रिश्ते और वह सब मिलता रहेगा जो आप कभी देना नहीं चाहते थे। और जो आपके पास है वो आप ही को मुबारक मुझे कभी नहीं चाहिए था | मुझे आप में से किसी को छोड़ने का अब कोई दुःख नहीं है। और आपके पैसे और संपत्ति को छोड़ना मेरे लिए गर्व और हिम्मत की बात है।
जो मेरा है, वह मुझे मिल जाएगा।"
पिता से जो मिलता है, वो सब मेरे लिए कहाँ है?
माँ से जो मिलता है, वो सब मेरे लिए कहाँ है?
तो फिर मैं उनके पास क्यों जाऊ, जो लगते तो माँ-पिता है,
लेकिन उनसे मिले मुझे अनगिनत भावनात्मक घाव है।
जो मिला है, वो इंसानियत के नाते मैं वापस नहीं दे सकता
और जो नहीं मिला, वो मैं कैसे दूँ?
इन भावनात्मक घावों को कैसे संभाले
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